Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 333
________________ (28) जाचकां नै दान दीयो पछै जीमण कीयो साधय ने सिरपाव दीया राजा डेरे प्रायो जिगनै सिरपाव हाथी दीया दूजां मार्ग में राजवी न ( 29 ) बाब प्रमुख आया डैरै जिणांनें राज मुजब सिरपाव दीया । श्री मूलनायकजी रे भंडार रै ताला 3 गुजरातियां रा हा सो चौथो तालो संघव्यां -- ( 30 ) परो दीयो सदाबरत सरु देई जैसा 2 मोटा काम करया पछै संघ कुसल खेम सू अनुक्रमे राधनपुर आयो उठे अंगरेज श्री गोडी ( 31 ) जी रा दरसण करण नैं आयो उठे पांणी नही थो गैबाऊ नदी नीसरी श्री गोडीजी नैं हाथी रै होदै बिराजमान कर संघ नै दरसण दि० 7 ( 32 ) इकलग करायो चढापै रा साढा तीन लाख रुपया प्राया सवा महीनो रहया जीमण घरणा हुवा श्री गोडीजी विराजण नै बडो चोतरो ( 33 ) पक्को करायो ऊपर छतरी बणाई घणो द्रव्य खरच्यो बड़ो जस आयो अक्षात नाम कीयो साथै गुमास्तो महेसरी सालगरांम हो जिणने जै - ( 34 ) न रा शिव रा सर्व तीर्थ कराया । पछै अनुक्रमे संघ पाली प्रायो जीमण 1 करने दानमल्ल कोटे गयो भाई 4 जेसलमेरु प्राया डेरा दरवाजै ( 35 ) बाहिर कीया पछै सामेलो बड़ा थाट सूं हुवो श्री रावलजी सांम पधारया हाथी रै होदै संघव्यां नैं श्री रावलजी श्रपरे पूठे बेसार नै ( 36 ) सारा सहर मैं हुय देहरा जुहार उपासरे प्राय हवेल्यां दाखल हुवा पछै सर्व महेसरी बगैरै छतीस पौन नै लुगायां समेत पांच पकवान ( 37 ) सू जीमायो ब्राह्मणा नैं जणें दीठ एक रुपयो दिषणा रो दीयो पछे श्री रावलजी जनानै समेत संघव्या री हवेली पधारया रुप्यां सूं चांतरो 54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350