Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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( 36 ) दि 10 रविवारे महाराजाधिराज राउल श्री जयतसिंह तथा कुमर श्री लूणकर्ण वचनात् श्री पार्श्वनाथ
( 37 ) भ्रष्टापद विचालइ सं० वीदइ सेरी छावी । कुतना वड बन्धाव्या । बारणा पउडसाण कराव्या । वेइबंध छज्जा -
( 38 ) वलि करावी । कोहर एक कराव्या । गाइ सहस 1 जोड़ी घृत अन्न गुल रुत घणी बार षट् दरसण ब्राह्मणा
( 39 ) दिकनां दीधा । श्री जेसलमेरु गढनी दक्षिण दिसइ घाघरा बंधाव्या । देहरानी सेरी नइ घाघरा बेऊ० श्री जय
( 40 ) तसिंह राउलनड प्रदेसइ सं० वीदड कराव्या । गउष करावी । दस अवतार सहित लषमीनारायणनी मू
( 41 ) ति गउषइ मंडावी । जिनो दशावतारोप्यवताररहितस्य तु । श्रीषोडशजिनेन्द्रस्य समियाय परीष्ट
( 42 ) ये ॥1॥
शुद्धसम्यक्त्वधारित्वाद्भावितीर्थङ्करत्वतः । स लक्ष्मीकः समायातो जिनो दातुमिव श्रियम् ||211 मण्डपा -
( 43 ) दिकनी कमठा सं० सहसमल्ल सं० करणा सं० धरणा कराविस्य । इत्येषा प्रशस्तिः श्री बृहत्खरतरगच्छे श्रीजि
( 44 ) नहंससूरिपट्टालंकार श्री जिन माणिक्यसूरि - विजयराज्ये श्रीदेवतिलकोपाध्यायेन लिषिता चिरं नन्दतु ॥
(45) सूत्रधार मनसुष पुत्र सूत्रधार घेताकेन मुदकारि प्रशस्तिरेषा कोरीतं ॥ ॥ श्रीभवतु ॥
50
(1) श्री लोद्रवनगरे श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीशैः
( 2 )
No. 32
Lodrava Inscription of the Family of Thaharushah Bhanasali
सं० 1675 मार्गशीर्ष सुदि 12 गुरौ भाण्डशालिक श्रीमल्ल भार्या चाम्पलदे पुत्ररत्न
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