Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 287
________________ co (2) कुचक्रपा ( वा ) लक्ष्मापालमाल वैशवि ( व ) रुथ (थि) नौगजघटाकुम्भस्थल विदारणैकपंचानन - समत्त (स्त) राजावलीसमलंकृत - अभिनव सिद्धराज महारा- ( 3 ) जाधिराजश्रीमत्सारंगदेव कल्याणविजयराज्ये तत्पादपद्मोपजीव (वि) नि महामात्य श्रीवाधूये श्रीकरणादिसमस्त मुद्राव्यापारान् परि ( 4 ) पन्थयति सतीत्येव (वं ) काले प्रवत्त (र्त्त) माने अस्यैव परमप्रभो [ : ] प्रसादपत्तलायां भुज्यमान अष्टादशशतमण्डले महाराजकुल- श्रीवीसलदेव [ : ] शा (5) सनपत्रं प्रयच्छति यथा । स एष महाराजकुलश्रीवीसलदेवः संवत् 1350 वर्षे म (मा) घसुदि 1 भौमेऽद्य ह श्रीचन्द्रावत्यां श्रोसवालज्ञातीय सा ――――――――― ( 6 ) धुश्रीवरदेवसुत - साधुश्री हेमचन्द्रेण तथा महा० भीमा महा० सिरधर श्रे० जगसीह श्रे० सिरपाल श्रे० गोहन श्रे० वस्ता महं विरपाल प्रभृति स ( 7 ) मस्तमहाजनेन भक्त याराध्य विज्ञप्तेन श्रीप्रर्बुदस्योपरि संतिष्ठमानवसहिकाद्वये निश्रयमाणघनतरकरं मुक्त्वा उद्य कृतकरस्य शासनपत्रं ( 8 ) प्रयच्छति यथा ॥ यत् श्रीविमलवसहिकायां श्रीश्रादिनाथदेवेन श्रीमातादेव्या [ : ] सत्क तलहड़ाप्रत्ययं उद्य देय द्र 28 अष्टविष्टाविंशतिद्रम्माः तथा श्रीप्रर्बुदे ( 9 ) त्य ठकुर - सेल हथ-तलारप्रभृतीनां कापडां प्रत्ययं उद्य देयद्र 16 षोडश द्रम्माः तथा कल्याणके अमीषां दिनद्वये दिनं प्रतिदेय कणहृतां 10 दश दा ( 10 ) तव्यानि । तथा महं० श्रीतेजपालवसहिकायां श्रीनेमिनाथदेवेन श्री मातादेव्या [ : ] सत्क वर्षं प्रतिदेय द्र 14 चतुर्दश द्रम्मा [:] तथा दिनौकेन कणहृतां 6 ( 11 ) देय 10 दश तथा श्रीअर्बुदेत्य ठकुर सेलहथ-तलार प्रभृतीनां कापडां प्रत्ययं देय द्र 8 अष्टौ द्रम्मा तथा प्रमदाकुलसत्कनामां नामकं प्रति षट् - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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