Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 314
________________ ( 6 ) न 11 शक्तिकुमार 12 शुचिवर्म 13 कीर्तिवर्म 14 योगराज (7) 15 वैरट 16 वंशपाल 17 वैरीसिंह 18 वीरसिंह 19 श्री अरि( 8 ) सिंह 20 चोडसिंह 21 विक्रमसिंह 22 रणसिंह 23 क्षेमसिंह ( 9 ) 24 सामन्तसिंह 25 कुमारसिंह 26 मथनसिंह 27 पद्मसिंह ( 10 ) 28 जैत्रसिंह 29 तेजस्विसिंह 30 समरसिंह 31 चाहु( 11 ) मानश्रीकीतूकनूप श्रीमल्लावदीनसुरत्राणजैत्र- बप्प ( 12 ) वंश्य श्रीभुवनसिंह 32 सुत श्रीजयसिंह 33 मालवेश( 13 ) गोगादेव जैत्र श्रीलक्ष्मसिंह 34 पुत्र श्रीमजयसिंह ( 14 ) 35 भ्रातृ श्री मरिसिंह 36 श्रीहम्मीर 37 श्री खेतसिंह 38 ( 15 ) श्रीलक्षाव्हयनरेन्द्र 39 नन्दन सुवर्णतुलादिदानपुण्य( 16 ) परोपकारादिसार गुणसुरद्र, मविश्रामनन्दन - श्रीमोकल( 17 ) महीपति 40 कुलकाननपञ्चाननस्य । विषमतमाभङ्गसारङ्ग( 18 ) पुर-नागपुर-गागरण नराणकाsजयमेरु- मण्डोर मण्डलकर - बूदि ( 19 ) खाटू चाटसू - जानादिनानामहादुर्गलीलामात्रग्रहणप्रमाणि( 20 ) तजितकाशित्वाभिमानस्य । निजभुजोजितसमुपाजितानेकभ( 21 ) द्रगजेन्द्रस्य । म्लेच्छमहीपालव्याल चक्रवालविदलनविहङ्गमे( 22 ) न्द्रस्य । प्रचण्डदोर्दण्डखण्डिताभिनिवेशनानादेशन रेशभालमा( 23 ) लालालितपादारविन्दस्य । प्रस्खलितल लितलक्ष्मीविला( 24 ) सगोविन्दस्य । कुनयगहनदवानलायमानप्रतापव्या ( 25 ) पपलायमानस कलब लूल प्रतिकूलक्ष्मापश्वापदवृन्दस्य । ( 26 ) प्रबलपराक्रमाक्रान्तढिल्लीमण्डल गूर्जरत्राणदत्तातप( 27 ) त्रप्रथित हिन्दुसुरत्राण विरुदस्य सुवर्णं सत्रागारस्य षड्दर्श( 28 ) नधर्माधारस्य चतुरङ्ग वाहिनीपारावारस्य कीर्तिधर्मप्र( 29 ) जापालनसत्वादिगुणक्रियमाणश्रीरामयुधिष्ठिरादिन रेश्वरानुका( 30 ) रस्य राणा श्री कुम्भकर्णसवर्वीप तिसार्वभौमस्य 41 विजय( 31 ) मानराज्ये तस्य प्रसादपात्रेण विनयविवेकधैयौदार्य शुभकर्म( 32 ) निर्मलशीलाद्यद्भुतगुणमणिमयाभरणभासुरगात्रेण श्रीमदहम्मद ( 33 ) सुरत्राणदत्त फुरमाण साधुश्री गुण राजसंघपतिसाहचर्यकृताश्च( 34 ) कारिदेवालयाडम्बरपुरः सरश्री शत्रुञ्जयादितीर्थयात्रेण । प्रजा( 35 ) हरी - पिंडरवाटक- साले रादिबहुस्थाननवीन जैन विहारजीर्णोद्धार( 36 ) पदस्थापना - विषमसमयसत्रागार - नानाप्रकारपरोपकार - श्रीसंघस( 37 ) त्काराद्यगण्यपुण्य महार्घक्रयाणकपूर्य मारणभवार्णवतारणक्षम( 38 ) मनुष्यजन्मयानपात्रेण प्राग्वाटवंशावतंस सं० कुर Jain Education International For Private & Personal Use Only 35 www.jainelibrary.org

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