Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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पातालातुलमण्डपामल तुला मालम्बते तावत्ताररवाभिरामरमणी [ गं] धर्वधीरध्वनि
भूतलम् ।
र्द्धामन्यत्र धनोतु धार्मिकधियः [स] द्धूपवेलाविधौ ॥39॥ सालंकारा समधिकरसा साधुसन्धानबन्धा
श्लाध्यश्लेषा ललितविलसत्तद्धिताख्यातनामा | सद्वृत्ताढ्या रुचिरविरति मार्धं वर्या
सूर्याचार्यैर्व्यरचि रमणीवाति [ रम्या ] प्रशस्तिः ॥ 140 || संवत 1053 वर्षे माघशुक्ल 13 रविदिने पुष्यनक्षत्रे श्रीरि(ऋ) षभनाथदेवस्य प्रतिष्ठा कृता महाध्वजश्वारोपितः ।। मूलनायकः ।। नाहक जिन्दजस शम्पपूरभद्रनागपोचि [ स्थ] श्रावकगोष्ठिकैरशेषकर्मक्षयार्थं स्वसन्तानभवाब्धितर [णार्थे च] न्यायोपार्जितवित्तेन कारितः
॥ छ।
34
बहुभाजन राजि
भोजनधामसमम् ||3511 विदग्धनृपकारिते जिनगृहेऽतिजीर्ण पुनः
समं कृतसमुद्धृताविह भवां [ बु] धिरात्मनः । प्रतिष्ठित सोऽप्यथ प्रथमतीर्थनाथाकृति
जिनायतनं प्रविराजति
स्वकीर्तिमिव मूर्ततामुपगतां सितांशु तिम् ॥ 136 || शान्त्याचार्यैस्त्रिपञ्चाशे सहस्र शरदामियम् । प्रतिष्ठिताः ||37
माघशुक्ल त्रयोदश्यां सुप्रतिष्ठैः विदग्धनृपतिः पुरा यदतुलं तुलादेर्ददौ सुदानमवदानधीरिदमपीपलन्नाद्भुतम् । यतो धवलभूपतिज्जिनपतेः स्वयं सात्म [ जो ] - रघट्टमथ पिप्पलोपप [ दकू ]पकं प्रादिशत् ॥38॥ यावच्छेषशिरस्थमेकरजतस्थूणास्थिताभ्युल्लसत्
No. 23
The Ranakpur Inscription of V. E. 1496
( स्वस्ति) श्रीचतुर्मु खजिनयुगादीश्वराय नमः ॥ [ श्रीमद्वि ] क्रमतः 1496 संख्यवर्षे श्रीमेदपाटराजाधिरा [ज] श्रीबप्प 1 श्रीगुहिल 2 भोज 3 शील 4 कालभोज 5 भर्तृ भट 6 सिंह 7 महायक 8 राज्ञीसुतयुतस्वसुवतुलातोलक श्रीखुम्मण 9 श्रीमदल्लट 10 नरवाह
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