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( २५ ) प्रतिवर्ष उसे लगा करता है । उनकी यह भावना उनके द्वितीय
पुत्र डा० महेन्द्र प्रतापं मेहता के विवाह के गवसर पर प्रकाशित भावनांजलि के अन्तर्गत उस पृष्ठ पर देखी जा सकती है, जहां इन्होंने वैष्णव तथा जैन मन्दिरों के साथ उस मकबरे का भी चित्र संकलित किया है |
सम्भवतः सभी वर्गों के प्रति उनके इसी समन्वित उदार चिन्तन क्रम का ही परिणाम है । यह पुस्तक जिसके अन्तर्गत उन्होंने भारतीय संस्कृति की सम्पूर्ण अर्थवत्ता में जैन और वैष्णव दोनों ही धर्मों की विशिष्ट परिकल्पनात्रों को समाहित करने की मौलिक व्याख्या प्रस्तुत की है ।
निःसन्देह उनके इस प्रयास के अन्तर्गत निहित चिन्तन को समस्त भारतीय चेतना और विद्वत समाज के प्रति इस अपेक्षाके साथ कि उनकी यह समन्वयात्मक कृति निश्चित ही अपना एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करेगी। मैं अपनी समस्त अनुशंसा इस विशिष्ट योगदान के प्रति अर्पित करता हूँ ।
कंचन कुंवर सिंह
१६ अक्टूबर १९७४ गंज- वासौदा ( म०प्र०)