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है । ऋग्वेद (४१२७११) में केवल सिन्धु का प्रयोग मिलता है। हिंदू उसी सिंधु का पार्शीयन रूपान्तर है।
प्राचीन तथा अर्वाचीन, हिंदू तथा अहिंदू आस्तिक तथा नास्तिक जितने प्रकार के भारतीय हैं, सबों के दार्शनिक विचारों को भारतीय दर्शन कहते हैं। कुछ लोग भारतीय दर्शन को हिन्दू दर्शन का पर्याय मानते हैं। किन्तु यदि 'हिंदू' शब्द का अर्थ वैदिक धमविलम्बी हो तो 'भारतीय दर्शन' का अर्थ केवल हिंदुओं का दर्शन समझना अनुचित होगा। इस सम्बंध में हम माध वाचार्य के 'सर्वदर्शन-संग्रह' का उल्लेख कर सकते हैं। माधवाचार्य स्वयं वेदानुयायी हिंद थे। उन्होंने उपर्युक्त ग्रंथ में चार्वाक, बौद्ध तथा जैन मतों को भी दर्शन में स्थान दिया है। इन मतों के प्रवर्तक वैदिक धर्मानुयायी हिंदू नहीं थे। फिर भी इन मतों को भारतीय दर्शन में वही स्थान प्राप्त है जो वैदिक हिंदुओं के द्वारा प्रवर्तित दर्शनों को है।२।।
यह हिंदू धर्म है । हिंदू धर्म शब्द भारत के किसी महान् मथ में कहीं नहीं प्राप्त होता, इसी से उसका विश्वत्व स्पष्ट हो जाता है। हिंदू धर्म का प्रयोग हम अपनी सुविधा एवं एवं सीमा के कारण करते हैं । इस शब्द की उपयोगिता यहीं तक माननी चाहिये।
बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिखपंथ के सदृश ही हिंदू १-समस्या का पत्थर-अध्यात्म की छैनी: मुनिनथमल जी
पृष्ठ १२८ २-भारतीय दर्शन-श्री सतीशचंद चट्टोपाध्याय एवं श्री धीरेन्द्र
मोहन दत्त-पृ०१ ३-हिंदू धर्म-रामप्रसाद मिश्र-प्रस्तावना पृ० ३
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