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इसी पुस्तक में कविवर ने हनुमान की वन्दना करते हुए सिद्धियों और नवनिधियों के दाता के रूप में उस महाबली हनुमान के गुण का गान किया है । ऐसे हनुमान जिन्होंने राम के भक्त के रूप में सीता की सुधि ली, राम के कार्य को पूर्ण किया, ऐसे अजर और विकार से रहित हनुमान के गुण का प्रतिदिन गान करने से बुद्धि निर्मल हो जाती है । हनुमान का यह दर्शन में अपना विशिष्ट स्थान है और वस्तुतः राम के समान राजा और हनुमान जैसा भक्त न तो अब तक भूतल पर हुए और न होंगे।
सुगुरू नन्द नवनिधि के दायक, प्रणभू बार हजार । गुण गाता मैं वीर बली का, परमा पूरणःहार । काज सुधारे भक्त राम के, ली सीता की सुध । करे गान गुण प्रतिदिन उनकी, निर्मल होवे बुद्ध । सिद्ध नाम प्रख्यात हनु का, षट दर्शन में मान । हुए न होंगे राम भूम से, सेवक हनुमान ॥'
इस प्रकार निष्कर्षतः यह स्पष्ट है कि हिन्दू ग्रन्थों में वर्णित हनुमान के चरित्र और जैन ग्रन्थों में उल्लिखित हनुमान मूलतः धर्म और संस्कृति के समन्यात्मक धरातल पर समान है । दोनों ही ग्रन्थों में हनुमान की वही मर्यादा और विशिष्ट गुणों, कर्त्तव्यनिष्ठा, भक्ति, ब्रह्मचर्य और शक्ति आदि का प्रतीक माना गया है जो इस बात की पुष्टि करता है कि जैन और हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के कई धरातल पर अभिन्न हैं।
१-जैन रामायण : श्रीमान कविवर्य सूर्यमुनि जी महाराजःपृ० २३