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व्याख्या करते हुए प्राचार्य जिनसैन ने लिखा है कि सर्वज्ञ देव की आज्ञा को प्रधान मानने वाला वह द्विज, जो मन्त्रपूर्वक सूत्र धारण करता है, उसके व्रतों का चिन्ह है। तीन रत्न का जो यज्ञोपवीत है वह हृदय में उत्पन्न हुए सम्यक दर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यक् चरित्र तथा गुणरूप जो श्रावक का सूत्र है वह उसका भावसूत्र है। ___ भरत महाराज के अनुसार उपनीति संस्कार के नियम का पालन करते हुए जिसने अहितन्त देव की पूजा की है ऐसे उस बालक को व्रत देकर उसका मौंजी बन्धन करना चाहिए जो चोटी रखाये हुए हैं, जिसके तन पर सफेद धोती और सफेद दुपट्टा है. जो वेश और विकारों से रहित है तथा जो व्रतों के चिन्ह स्वरूप यज्ञोपवीत सूत्र को धारण कर रहा है । उसे ही ब्रह्मचर्य मानना चाहिये।
कितने लर का यज्ञोपवीत होता है, इसके स्पष्टीकरण के .. सन्दर्भ में व्रतचर्या संस्कार का निरूपण करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया है कि सात लर का गुठा हुआ यज्ञोपवीत होना चाहिये।
दीक्षान्वय क्रियानों में भी एक उपनीति क्रिया कही गयी है और उसमें यज्ञोपवीत धारण करने का विधान है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि व्यक्ति जैन धर्म में चाहे नव दीक्षित हो, चाहे कुल परम्परा से जैनी हा, प्राचार्य जिनसैन के अभिप्राय अनुसार यज्ञोपवीत का धारण करना द्विजमान के लिए आवश्यक है। जिस गृहस्थ ने जितनी प्रतिमायें स्वीकार की हों उसे उतनी लर का यज्ञोपवीत धारण करना चाहिये ।'
श्री रामचन्द्र शर्मा वीर ने भी जैन मतावलम्नियों द्वारा शिखा और सूत्र धारण करने की बात को स्वीकार किया है ।२ १-वर्ण जाति और धर्म-पं० फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री -पृ. २०१ २-विजय पताका -श्री रामचन्द्र शर्मा वीर -पृ० १८१
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