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दूसरे धर्मों के प्रति कोई भेदभाव नहीं बरता जाता था। स्कंधगुप्त के समय एक वैष्णव ने जैन प्रतिमाओं का भी निर्माण कराया था । अपभ्रंश के महांकवि पुष्पडंत जो कि काश्यम गोत्रिय ब्राह्मण थे, माता-पिता के शैवानुयार्य होने के उपरान्त भी उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ली और जिन सन्यास लेकर शरीर त्याग किया ।'
मगध देश में ३२२ ई० पूर्व चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य था। जो मौर्यय नामक क्षत्रिय वंश में से थे। २४ वर्ष राज्य करने के बाद २६८ ई० पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य का देहान्त हो गया, जिन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था।
गुजरात में कुमार पाल सौलंकी राजपूत को राज्य था। वो जैन धर्म का मानते थे, जैन विद्वान उनके दरबार में रहते थे। कुमार पाल की मृत्यु ११७३ ई० में हुई थी, जिनकी राजधानी अन्हलवाड़े में थी।
इनके अतिरिक्त कई अन्य वैष्णव राजाओं ने भी जिन दीक्षा स्वीकार की थी।
वशाली के राजा चेटक, सिन्धु सौवीर देश का राजा-उदयन, अवन्ती नरेश-प्रद्योत, कोशम्बी का राजा-शतानीक, चम्पा का राजा-श्रोणिक, मगध सम्राट-कुणिक, (आजात शत्रु) सम्राटसम्प्रति (अशोक का पौत्र) महाराजा-खारवेल, गुजरात का महाराजा-अमोघवर्प, चावड़ावंशी-वनराज, चालुक्योंवंशी-मूलराज, रथवीरपुर के-शिवभूति, (पृष्ठ २६३) .
१-जैन, साहित्य और इतिहास-पृष्ठं २२५