Book Title: Jain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Author(s): Ratanchand Mehta
Publisher: Kamal Pocket Books Delhi

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Page 141
________________ ( १३६ ) ऐवक द्वारा किले के प्रांगण में स्थित इस विशाल मन्दिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर 'दवातुल इस्लाम' नामक मस्जिद के निर्माण के उपरान्त भी आज उपलब्ध हैं, उसके आधार पर भी हिन्दू : वैदिक और जैन की परम्परा समन्विति प्रमाणित होती है । इस प्राचीन मन्दिर के दो खण्ड थे, पहला गर्भ गृह, जहां पूजन हुआ करता था, दूसरा वह पांगण जहां लोग एकत्र होते थे, इसे जगमोहन कहा जाता था । यद्यपि गर्भगृह की मूर्तियां तत्कालीन मुगल शासकों द्वारा तलवार से खण्डित कर दी गई हैं तथापि मस्जिद के पीछे आज भी यह गर्भगृह सुरक्षित है। और इसकी छत के चारों चोर बीस फिट ऊंची सुन्दर मूर्तियां बनी हुई हैं तथा इसकी सबसे ऊंची प्रस्तर पट्टी पर जैन तीर्थकर के जीवन से सम्बन्धित दृश्य अंकित हैं । जगमोहन के चारों कोनों पर जिनमें अब केवल तीन ही शेप हैं, दो मंजिले कमरे हैं, जिनमें जैन तीर्थकरों के जीवन से संम्बन्धित दृश्य अंकित हैं । मस्जिद की बाहरी दीवारों में भी कुछ प्रस्तर प्रतिमाय पूर्णरूपेण सुरक्षित हैं । मस्जिद की दक्षिणी दीवार पर वाहर की ओर गणेश की एक प्रतिमा है । कुछ मूर्तियां खजुराहो और भुवनेश्वर शैली की भी हैं । १ उपरोक्त प्रमाण के ग्रावार पर एक ही मन्दिर में जैन तीर्थ करों और गणेश की मूर्ति की प्राचीनता इस वात की साक्षी है $ कि मूलतः श्राज जो सतही विभिन्नता जैन और सनातनी हिन्दू : रूढ़िगत अर्थों में धर्मो में मूलतः बड़ा गहरा सामंजस्य है और ये दोनों एक ही हैं । यदि उपरोक्त मन्दिर को जैनियों द्वारा १- डा० सुरेन्द्र सहाय : पुरातत्व सम्बन्धी लेख, दिनमान, ३ जनवरी १९७१ पृष्ठ: ३२ 7

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