Book Title: Jain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Author(s): Ratanchand Mehta
Publisher: Kamal Pocket Books Delhi

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Page 151
________________ जाता है, जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रों को उतार कर नये को धारण करते हैं।' बौद्ध दर्शन के समान जैन दर्शन भी कर्म फल को मानता है और शुभ कर्मों से स्वर्ग तथा अशुभ कर्मों से नरक की प्राप्ति के सिद्धान्त में विश्वास करता है ।२ वस्तुतः कर्म को समझने के लिए कर्मवाद को समझने की जरूरत है । 'वाद' का अर्थ सिद्धान्त है । जो वाद कर्मों की उत्पत्ति, स्थिति और उनकी रस देने आदि विविध विशेषताओं का वैज्ञानिक विवेचन करता है, वह कर्मवाद है । जैन शास्त्रों में कर्मवाद का बड़ा गहन विवेचन है । आत्मा, पुनर्जन्म और कर्म सिद्धान्त-ये तीनों परस्पर में अनुस्यूत है। आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व मानने पर शेष दोनों को भी मानना पड़ता है। जैन मत में पुनर्जन्म के प्रति आस्था प्रदर्शित की गई है । जैन आगम ग्रन्थों तथा महापुराणादि चरित गाथाओं में बारम्बार पुनर्जन्म के उल्लेख हुए हैं। जैन मतानुसार जीव इस संसार में कम से प्रेरित होकर भ्रमण करता है। १-श्री बल्लभ दास जी विन्नानी : पुनर्जन्म सिद्धान्त की विश्व व्यापी मान्यता कल्याण अंक -पृष्ठ ३०१ २-५० गौरी शंकर द्विवेदी : दर्शन और पर लोकवाद-वही अंक पृष्ठ ३१२ ३-५० चैनसुखदास न्यातीर्थ : जैन धर्म का कर्मवाद-वही अंक पृष्ठ ४६० : ४-कैलाशचन्द्र शास्त्री : जैन धर्म में आत्मा पुनर्जन्म और कर्म - सिद्धान्त वही अंक पृष्ठ ४६३ ५-डा० राज नारायण पाण्डे : जन मत में पुनर्जन्म तथा कर्म सिद्धान्त-वही अंक पृष्ठ ४६६

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