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जैन साहित्य में श्री राम और कृष्ण
जैन साहित्य में राम और कृष्ण की कथा रूपान्तर से मान्य रही है। राम की कथावस्तु को जैन विद्वानों ने भी पुराणों, काव्यों एवं नाटकों आदि के रूप में प्रावद्ध किया है।
विक्रम संवत् ६० के लगभग विमल हरि ने प्राकृत में 'पउम चरिउ' लिखा । इसका सम्पादन जर्मन विद्वान डा० याकोबी ने किया था । श्री नाध्रराम प्रेमी के अनुसार यह ग्रन्थ श्वेताम्बर
और दिगम्बर सम्प्रदायों की उत्पत्ति से भी पूर्व का है, क्योंकि इनकी उत्पत्ति विक्रम संवत् १३६ है । किसी विद्वान ने चौंतीस हजार वाले श्लोकों का 'सीया चरिय' भी प्राकृत में लिखा है, जो प्राचीन माना गया है।
अपभ्रश भाषा में महाकवि स्वयं ने वारह हजार श्लाका का 'पउम चरिउ' रचा। उसका रचना-काल विक्रम संवत् ७३४ माना है। राम कथा पर प्रकाश डालने वाला प्राकृत भाषा का दूसरा ग्रन्थ 'तिस टिमहापुरिस गुणालंकारू' है। यह प्रादि पुराण और उत्तर पुराण, दो खण्डों में विभाजित है। उत्तर-पुराण पद्म-पुराण में 'रामायण' का प्रमुख स्थान है। इसके रचयिता कविवर पुष्पदन्त हैं । इसकी रचना सम्बत् १०३ में हुई । कविवर रविषेण ने इसका अवतरण संस्कृत भाषा में किया
१-आशा विवेकी : अग्नि परीक्षा कृति और कसोटी-पृष्ठ ३०-३१