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और अनन्तकाल तक होते रहेंगे। इसलिए गणधर भी अनाद है और अनन्तकाल तक होते रहेंगे ।।
पं० कैलाशचन्द जी शास्त्री की सूचना के अनुसार डा० संम्पूर्णा नन्द की पुस्तक 'गणेश' के नवें अध्याय में यह उल्लेख किया गया है कि जैन धर्म में जिनेन्द्र भगवान को ही 'गणेश' और 'विनायक' कहते हैं । इसके अतिरिक्त उस नाम के किसी पृथक देव का नाम नहीं मिलता। विवाह के समय विनायक यन्त्र की पूजा की जाती है । उस अवसर पर जो श्लोक पढ़े जाते हैं, उनमें से दो श्लोक नीचे दिए जा रहे हैं - गणानां मुनीनामधीशस्त्वतस्ते गणेशाख्यया ये भवन्तं स्तु
वन्ति । सदा विघ्नसंदोहशान्तिर्जनानां करे संलुठत्यावतोवसानाम् ।।
यतस्त्वमेवासि विनायको मे दृष्टेप्टयोगानवरुद्धभावः । त्वन्नामाणपराभवन्ति विघ्नारयस्तहि किमत्र चित्रम् ॥
श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में गणेश जी के समान ही राजमुख वाले पार्श्वययक्ष की कई प्रतिमाएं जैन-मन्दिरों में प्रतिष्ठित हैं । इससे कई बार लोगों को भ्रम भी हो जाता है कि गणेशजी की मूर्ति जैन मन्दिरों में कैसे ? पर वास्तव में २३वे तीर्थकर पार्श्वनाथ का अधिष्ठायक शासनदेव श्वेताम्बर-ग्रन्थानुसार वे पार्श्वयक्ष ही हैं। . यद्यपि श्वेताम्बर विद्वान् और कवियों ने अपनी रचनाओं के मंगलाचरण में प्रायः तीर्थंकरों, गौतमगणवर एवं विशेपतः सरस्वती आदि का ही स्मरण किया है पर कई कवि ऐसे भी १-कल्याण-गणेश अंक-पृष्ठ ३७४-जैन मत में गणेश का
स्वरूप-तारा चन्द पांड्या २-कल्याण-गणेश अंक-पृष्ठ ३७२-लेखक भंवर लाल जी नाटा
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