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'वैसे भी गणेश जी को आद्य देव कहा गया है। जैनियों में बिनायक जी के नाम से मंगल कार्य में सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा होती है। ये रिद्धि सिद्ध के दाता माने जाते हैं। .
जैन व वैष्णवों की प्राचीन इमारतों के मुख्य द्वार पर दहरी के ऊपर गणेश जी की मूर्ति अंकित रहती है । कमरों के अन्दर तथा दरवाजों, दीवारों पर भी गणेश जी के रंगीन चित्र भी बने हुए आज भी देखे जा सकते हैं।
"ये मंगलकामी देवता केवल हिन्दुओं के ही उपास्यन रहे, वरन् बौद्धों और जैनों के भी पूज्य हुए"।' ___ श्वेताम्बर जैनों में विवाह के अवसर पर तो एक छोटे बालक को जो वर का छोटा भाई, भतीजा, भानजा रिश्ते में लगता हो उसे वर के साथ रहने वाला विनायक' बनाने की प्रथा भी चली आ रही है। ऐसे बच्चे को वर के माफिक ही कंकन बांधा जाता है। माथे पर चमकता केशर चन्दन से तिलक लगा, अच्छे वस्त्र पहना अलग से अथवा वर के साथ ही घोड़े पर बैठाया जाता है।
इस प्रकार सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक पक्षों में जैन मतावलम्बियों के बीच गणेश जी की मान्यता निर्विवाद है । वैष्णव धर्म के अन्तर्गत जो परिकल्पना गणेशजी की की गई है जैन धर्म में भी बहुत कुछ उसकी आधार भूमि समान दिखाई पड़ती है । अन्ततः यह कहना अप्रसांगिक न होगा कि आदि और मंगल कार्यों के प्रतीक गणेश जी दोनों ही धर्मों में हिन्दू संस्कृति का समान रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं । -नवनीत-गणपति गाथा-पृ० ५०-श्री जैनेन्द्र वात्स्थान