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(८२) आदि प्रान्तीय भाषाओं के माध्यम से जैन लेखकों द्वारा श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों पर विपुल साहित्य लिखा गया है। साथ ही उल्लेखनीय है द्विसंधान या राघवपाण्डवीय महाकाव्य, जिसके रचयिता धनन्जय हैं । इसमें १८ सर्ग हैं, इसके प्रत्येक सर्ग के प्रत्येक पद से दो अर्थ निकलते हैं, जिनसे एक अर्थ में रामायण और दूसरे अर्थ में महाभारत की कथा कुशलता से लिखी गई है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एक अर्थ में राम तथा दूसरे अर्थ में कृष्ण कथा का सृजन होता है।'
कर्मयोग और लोक धर्म की मौलिक जीवन दृष्टि को आधयात्म की सार्थक सचेतना से अनुप्रेरित कर भारतीय संस्कृति को एक सर्वथा नयी दिशा प्रदान करने वाले श्री कृष्ण का स्थान जैन साहित्य में भी सर्वोच्च है। इसी कारण जैन साहित्य में उन्हें भावी तीथन्कर की महिमा का प्रतीक माना गया। उनके व्यक्तित्व की सर्वांगीणता ही वैदिक परम्परा के अनुसार उनके ईश्वर के पूर्णावतार और आज भी उनके प्रति जन मानस की अपार श्रद्धा का मूल है। ___'श्री कृष्ण का जीवन जितना महान् है, उतना ही उज्ज्वल है। उनके सामने जीवन एक उल्लास भरा खेल है। सर्वत्र विशुद्ध प्रेम । उनका जीवन दर्शन समझना हो तो जैन साहित्य में
देखिए, महाभारत और गीता में देखिए, कितना विराट और . दिव्य रूप वहां अंकित है । विशुद्ध प्रेम और निष्काम कर्म का
विचित्र सामन्जस्य जैसा भारतीय संस्कृत के इस महान जीवन में उजागर हुअा है, वह बहुत ही गौरवमय एवं प्रेरणास्पद है।'२ १-श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री : भगवान् अरिष्ठनेमि और कर्मयोगी _श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन-पृ० १७, १६२, १६६ २-श्री अमर मुनि : जीवन दर्शन-पृ० २८१