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[ Τ ) स्थानीय हैं । भगवान् राम को जहां मर्यादा पुरुषोत्तम, अहेत, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी माना गया है, वहां सीता को सोलह महासतियों में प्रमुख पतिव्रता, दृढ़ धर्मा और सत्य और शील के लिए प्राणों को बलिदान करने वाली माना गया है । '
इसके अतिरिक्त हेमचन्द्राचार्य का त्रिषष्टि शलाका चरितासंगत रामचरित, स्वयं का अपभ्रंश पउमचरिय और मुनि केशराज का रामरास आदि अनेक जैन रामायण हैं, जिनमें राम का उदात्त चरित्र वर्णन है ।
सभी रामायणकारों ने श्रद्धा भरे शब्दों में राम का गुणगान किया है। रविषेणाचार्य राम को उर्जित चरित्र, अनन्तबली, नन्त गुणगेह, गतविकृति, त्रिभुवन, परमेश्वर आदि भक्ति भरित पाब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं --- जिनका उज्ज्वल यश तीन लोक में फैला हुआ है, जो निर्मल चरित्र थे, उन राम को प्रणाम करो ।
ग्रतः यह निर्विवाद है कि जैन साहित्य में प्रकारान्तर से राम कथा की एक प्राचीन परम्परा उसी रूप में विद्यमान रही है, जिस रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को अन्यत्र मान्यता मिली |
इसी भांति आत्मा के ग्रनन्त ज्ञान दर्शन और आनन्द को प्राप्त कर प्राणीमात्र के कल्याण के लिए श्राध्यात्म तथा धर्म का संदेश प्रचारित करने वाले महापुरुषों में जैन तीर्थकर भगवान् महावीर अरिष्टनेमि और पुरुषोत्तम श्री कृष्ण का १- मुनि श्री रूपचन्द्र : ग्रग्नि परीक्षा : एक समीक्षा-पृष्ठ
२७-३०
२ - उपा० अमर मुनि अग्नि परीक्षा कृति और कसौटी-पृष्ठ-३