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राष्ट्र को पुण्यभूमि, मातृभूमि एवं प्राध्यात्म-अनध्यात्म की कर्मभूमि स्वीकार करती आई है।'
भोपाल हिंदू महासभा के अध्यक्ष श्री कोमलप्रसाद श्रीवास्तव ने 'हिंदू' शब्द किसी अर्थ में सम्प्रदायिक नहीं, हिंद शब्द की व्याख्या करते हुए उसे साम्प्रदायिकता से परे राष्ट्रीय भावना का सूचक निरूपित किया है ।२।।
इसी प्रकार सनातन धर्म के मान्य नेता स्वामी करपात्री जी ने हिंद की परिभाषा इस प्रकार की है
गोपु भक्तिर्मवेथस्य प्रणवे चढ़ामतिः ।। पुनर्जन्मानि विश्वासः सर्वे हिंदुरितिस्मृतः ।।
अर्थात गौमाता एवं ओंकार में जिसकी भक्ति हो तथा पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो, वह हिंदू है।
स्वामी जी की परिभाषा विस्तृत है, क्योंकि जाति की पांचों शाखायें सनातन धर्मा, आर्य सामाजी, जैनी, बौद्ध एवं . सिक्ख, गौमाता, ओंकार एवं पुनर्जन्म में समान भक्ति व . विश्वास रखती है।
हिंदू महासभा के महान नेता स्वातंत्रवीर सावरकर आस्तिकों के अतिरिक्त नास्तिकों को भी अलग नहीं करना चाहते । अतः उन्होंने विस्तृत परिभाषा की है।
श्रासिन्धु सिन्धु पर्यन्ता यस्य भारत भूमिका । पितृभूः पुण्यभूश्चैव सर्वे हिन्दुरितिस्मृतः ॥ .
अर्थात इस भारत भूमि में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिंदू १-हिन्दुत्व का अनुशीलन -तनसुख राम गुप्त-पृ० ६५ २-नवभारत-भोपाल-१४ जनवरी १६७४
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