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पर ही आश्रित हैं । जिस प्रकार गंगा में बहुत सी छोटी-बड़ी नदियां मिलती हैं, किन्तु मिलने पर जो पयस्विनी बनती है वह गंगा ही कही जाती है। उसी प्रकार भारतीय संस्कृति को हिन्दू सस्कृति कहा जाता है। जिस प्रकार भारतीय दर्शन का नाम . लेने से वैदिक, वौद्ध, जैन, हिन्दू इत्यादि दर्शनों का बोध होता है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति कहने से वैदिक, बौद्ध, जैन इत्यादि विचार-धाराओं का समावेश हो जाता है। वस्तुतः भारतीय संस्कृति व हिन्दू संस्कृति के सम्बन्ध में किसी प्रकार का भ्रम नहीं खड़ा करना चाहिये । वह एक दूषित मनोवृत्ति का परिचायक होगा । भारतीय संस्कृति और हिन्दू संस्कृति दोनों समानार्थ सूचक हैं ।'
अतः सांस्कृतिक उद्भव और कालक्रम के उत्तरोत्तर विकास के परिणाम स्वरूप आज ये स्वीकार किया जाता है कि हिन्दू जैसे व्यापक और भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत जैन भर्म के । अनुयायियों को उससे पृथक मानना न्यायोचित नहीं ।
१-कल्पाण-अक्टूबर १९५४-पृ० १३५४-लेखक डा० परमानन्द
मिश्र प्रानन्दराज