Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur

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Page 8
________________ (iv ) ऐसी छोटी-२ पर उपयोगी और महत्वपूर्ण कथा-ग्रन्थ प्रत्येक बालक को पढ़ने को मिले तो उनके जीवन को सुसंस्कारित करने में में बहुत बड़ी सफलता मिलेगी। वैसे युवक, बुद्ध और नारी समाज द्वारा भी उनका पढ़ा जाना बहत लाभप्रद सिद्ध होगा। लोगों के पास समय की कमी है । अतः संक्षिप्त में ही लिखे होने से ये जैन कहानियाँ अवश्य ही बहुत उपयोगी सिद्ध होंगी। - श्री धीरजलाल टोकरसीशाह ने बाल ग्रन्थावली का प्रथम भाग गुजराती में सं० १९८६ में स्वयं प्रकाशित किया था। थोड़े ही वर्षों में ६ भागों में १२० कहानियां छप गई और काफी लोक प्रिय हई साथ ही उन्होंने 'विद्यार्थी वाचनमाला' के भी ऐसे कई भाग प्रकाशित किए, जो सर्व जनोपयोगी सिद्ध हुए। 'बाल ग्रन्थावलो' के प्रथम भाग की २० कहानियों का हिन्दी अनुवाद भी भजामिशंकर दीक्षित सेकरबा के ज्योति कार्यालय अहमदाबाद से संवत् १९८८ में प्रकाशित किया गया। इसके बाद बाल ग्रन्थावली के दूसरे भाग का हिन्दी अनुवाद पं० गोपीनाथ गुप्त से करवा के ऊंझा आयुर्वेदिक फार्मेसी, अहमदाबाद से सं० १९६४ को प्रकाशित करवाया गया। इसके निवेदन में लिखा गया है कि "इसमें महापुरुषों की जीवनी सरल और सुबोध भाषा में होने से गुजरात में तो यह घर-घर में सुरुचि से बाँची जाती है । इन पुस्तकों के अध्ययन से मनुष्यों को आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है। इनसे बच्चों के हृदय में धर्म प्रेम जागृत होने से वे सुसंस्कारी और सदाचारी बन सकेंगे। इसलिए हमने इसे सर्वव्यापी बनाने के लिये राष्ट्रभाषा में अनुवाद कराके प्रकाशित किया है।" बहुत उपयोगी होने पर भी 'बाल ग्रंथावली' के दोनों भागों के उपयुक्त हिन्दी संस्करण काफी वर्षों से नहीं मिलने और आगे के भागों का तो हिन्दी अनुवाद हुआ ही नहीं । विगत ५० वर्षों में भी जैन बाल साहित्य के निर्माण और प्रकाशन का विशेष कार्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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