Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur

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Page 7
________________ फलस्वरूप 'बालग्रन्थावली' के नाम से २०-२० कथाओं के छः गुच्छव अर्थात् १२० बालकोपयोगी जैन कथाएँ उन्होंने प्रकाशित की। बालग्रंथावली के प्रथम भाग में उन्होंने लिखा है कि शुष्क तत्व-ज्ञान साधारण-मनुष्यों की बुद्धि में नहीं आता, उनकी समझ में यह तभी आता है, जब कथाओं के द्वारा उन्हें समझाया जाय । यह तो निश्चित ही है कि सूक्ष्म-रीति से इन कथाओं का संस्कार सुनने वाले के मन पर पड़ता रहता है। यही कारण है कि जैन साहित्य का एक बड़ा भाग इस प्रकार की कथाओं से परिपूर्ण है। ये सब कथाएँ शान्त रस-वैराग्य भावना की पुष्टि में ही रची गई हैं। इनमें शृंगार, वीर, करुणा तथा अद्भुत आदि सभी रसों का स्वतन्त्रता पूर्वक उपयोगी होने पर भी, उन्हें गौण स्थान दिया गया है । इन कथाओं का उद्देश्य पाशविक-वृत्तियों को उत्तेजन देना नहीं वरन् मनुष्य जीवन में रहने वाले विषय-कषायों की अग्नि को शान्त करने एवं महान अमृत-आत्मज्ञान रूपी अमृत का रस चखाना रहा है। आज से कुछ वर्ष पहले जीवन-संग्राम जटिल न होने के कारण व्याख्यान आदि शान्ति पूर्वक सुने जाते थे। पुस्तकें यद्यपि कम होती थीं, किन्तु उन्हें ध्यान पूर्वक पढ़ा जाता था। अवकाश के समय ये कथायें मित्र मण्डली में भी कही जाती थीं। संस्कारित माताओं के बच्चों को माताओं की वात्सल्य पूर्ण और मीठी वाणी से महान व्यक्तियों के उत्तम चरित्र के श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त होता था। पर जीवन की दिशा बदल जाने के कारण आज की संतान को वह सौभाग्य प्रायः नहीं मिल पाता बालकों के सम्पर्क में आने पर विदित हुआ कि उन्हें महान से महान पुरुष के जीवन के विषय में प्रायः कुछ भी जानकारी नहीं होती। इसीलिए बाल साहित्य की कमी के पूर्तिरूप 'बाल ग्रन्थावलो' का लेखन प्रकाशन किया गया। हर्ष है कि थोड़े ही समय में २ भागों की करीब १ लाख प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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