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जैन-गौरव स्मृतियां these
को स्पष्ट करता है । प्रत्येक बुद्ध का अर्थ यह है कि "जो अपने लिए ज्ञानी हुआ हो,” और बुद्ध का अर्थ यह कि वह पुरुष जो सबके लिए ज्ञानी हुआ हो ! पहला ज्ञानी एकान्त में रहता हुआ अपनी आत्म शुद्धि करके संतोष मानता है। दूसरा लोक समाज में विचरते और उपदेश देते हुए भी आत्म शुद्धि का प्रयत्न करता है । महावीर को एकान्त वासी प्रत्येक बुद्ध की संज्ञा तो दी नहीं जा सकती, क्योंकि वह भी लोक समाज में विचरते थे। बुद्ध की तरह महावीर के भी अनेक शिष्य थे और उनका अपना संघ था। महावीर के संघ का विस्तार भी होता रहा। भारत की सीमा के बाहर, यद्यपि उसका विस्तार अधिक न हुआ परन्तु भारत में उसका अस्तित्व आज तक है । अतः महावीर का स्थान प्रत्येक बुद्ध से ऊँचा है। निस्संदेह महावीर उन महापुरुषों में थे जो आत्मचिन्तन पर विशेष ध्यान देते थे और उनके शिष्यगण आत्मोद्धार के लिए विशेष पुरुषार्थ करते थे। इस प्रकार प्रत्येक बुद्ध और युद्ध इन दोनों श्रेणियों के ऊपर महावीर थे। :- बुद्ध और महावीर की लोक समाज के प्रति दृष्टि की भिन्नता. बताते हुए ल्यूमन ने ही लिखा है कि "महावीर लोक समाज के साथ हिल-मिल जाने की वृति से दूर रहते थे और वुद्ध लोक समाज में घुल मिल भी जाते थे । यह भेद इस पर से स्पष्ट जाना . जाता है कि जब उनके अनुयायी प्रसंगोपात्त बुद्ध को भोजन का निमन्त्रण देते तो वे उनके यहाँ भोजन करने चले जाते थे परन्तु महावीर ऐसा मानते थे कि जनसमाज के साथ ऐसा सम्बन्ध नहीं रखना चाहिये । . भ० महावीर और बुद्ध के जीवन के मुख्य भेदों पर विचार करते समय हमारे सामने प्रधानरूप से निम्न बातें आती हैं:. (१) भगवान् महावीर ने तपश्चर्या को स्वीकार कर उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त की जब कि बुद्ध ने प्रारम्भ में तपस्या अंगीकार की परन्तु वे उसके द्वारा समाधि प्राप्त न कर सके । इसलिए उन्होंने तप पर विशेष भार नहीं दिया। उन्होंने मध्यम मार्ग का अवलम्बन लिया । न तो वे गृहस्थों की तरह वासनासक्त थे और न श्रमणों के समान घोर तपस्वी । महावीर आत्मयोगी और महा तपस्वी थे। . . . . . . . . .
SOLAN
SHELONGEKANERN
ANNY
SANAwa