________________
Streastseek जैन-गौरव-स्मृतियाँ *
के पास थी तब यह टेकरी तारागिरि के नाम से शत्रुञ्जय के साथ जुड़ी हुई थी और इसीसे सिद्धशिला, कोटिशिला, मोक्ष की बारी आदि स्थान इसके पास की टेकरियों पर ही हैं। .
श्री हेमचन्द्राचार्य ने अजितनाथ स्वार्मा की स्तुति करते हुए कुमारपाल राजा को तारंगा का शत्रुञ्जय के समान महत्व बतलाया, इससे प्रेरित होकर उसने तारंगा गिरि पर भव्य जिनमन्दिर बनवाकर उसमें श्री अजित- . नाथ प्रभु की प्रतिमा प्रतिष्ठित की। तारंगाजी का मन्दिर बहुत ऊँचा है। . इसकी ऊँचाई लगभग ८४ गज है। इतना ऊँचा मन्दिर भारतवर्ष में : दूसरा कोई नहीं है । इसके बत्तीस मंजिल हैं। परन्तु तीन चार मंजिल तक .. ही जाया जा सकता है। केगर की विशिष्ट लकड़ी के मंजिल बने हुए हैं। इस लकड़ी की यह विशेषता है कि यह आग से नहीं जलती है। यहाँ सं० १२८५ में वस्तुपाल-तेजपाल ने आजतनाथ देव के मन्दिर में आदिनाथ देव की प्रतिमा के लिए गोखड़ा बनवाया था, ऐसा लेख मिला है। इसके बाद ईडर के राजमान्य श्रीमन्त गोविन्दसंघवी ने नवीन जिनविम्बर करवाकर मन्दिर का जीर्णोद्धार किया इससे प्रतीत होता है कि कुमारपाल द्वारा प्रतिष्ठित मृति अब यहाँ विद्यमान नहीं है। मुसलमान काल में सम्भव है उसे क्षति पहुँची हो।
तारंगाजी का भव्य दृश्य. बड़ा ही रमणीय है। इस प्रासाद की की बारीक खुदाई और आदर्श रचना हिन्दुस्तान के कलाकुशल शिल्प शास्त्रियों की अद्भुतता की प्रतीक है। यहा नन्दीश्वर और अष्टापद के के दर्शनिय मन्दिर है । सिद्वशिला और कोटिशिला पर देवकुलिकाएँ. है । यहा से अनेक कोटि यात्माओं ने मुक्ति प्राप्त की है। ......... ईडरगिरिः---- . . . .
यह प्राचीन तीर्थ है। सम्प्रति राजा ने यहाँ शान्तिनाथ का मन्दिर बनवाया ऐसा उल्लेख मिलता है कुमारपाल राजा ने यहाँ आदिनाथ का .. मन्दिर बनवाया था। गोविन्द संघपति ने इसका उद्धार करवाया। ईडरगढ़ . पर अभी बावन जिनालय. का बहुत ही रमणीय भव्य मन्दिर है। हार्भा . दो लाख तीस हजार के खर्च से अानन्दजी कल्यागजी की पेढी की तरफ