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1 में मेवाड़ और ब्रिटिश सरकार के मैत्री सम्बन्ध स्थापित हुए | कर्नल डॉट उदयपुर के ब्रिटिश सरकार की ओर से पोलिटिकलए एजेन्ट बनकर आये |
आपके बाद मेहता रामसिंह जी और मेहता शेरसिंह जी मेवाड़ के दीवान रहे। आप दोनों का कार्यकाल भी बड़ाम हत्त्व पूर्ण रहा । मेहता रामसिंह जी बड़े राजनीतिज्ञ और दूरदर्शी थे ।
बाफनाः
जिस समय अंग्रेज राजपूताने की रियासतों के साथ मैत्री सम्बन्ध 'स्थापित कर रहे थे उस समय सेठ जोरावरमल जी बाफना का जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर, इन्दौर, उदयपुर आदि रियासतों में सेठ जोरावरमलजी बड़ा प्रभाव था । सन् १८१८ में जब कर्नल टॉड राजपूताने के पोलिटिकल एजेन्ट बनकर उदयपुर आये तब उन्होंने सेठ जोरावरमलजी को दीवान बनाकर इन्दौर से उदयपुर बुलाने की महाराणा को सम्मति दी, क्योंकि सेठ वाफना जी अर्थ विशेषज्ञ और चतुरशासक थे । मेवाड़ की बिगड़ती हुई आर्थिक अवस्था के सुधार के लिये ऐसे व्यक्ति की परम आवश्यकता थी । हुआ भी ऐसा ही । सेठ जोरावरमल की चतुराई से मेवाड़ का कई लाख का कर्जा सम करदिया गया। महाराणा स्वरूपसिंह जी के समय में मेवाड़ रियासत पर करीब २० लाख का कर्ज था. जिसमें से अधिकांश सेठ जोरावरमलजी का था । इस ऋण को मिटाने के लिये सेठजी ने एकबार अपनी हवेलीपर महाराणा सा० को निमंत्रित किया और जैसे महाराणा सा० ने चाहा वैसे ही करजा निपटालिया । महाराणा जी ने इससे प्रसन्न होकर आपको कुण्डाल गांव जागीरी में दिया । इसी प्रकार आपने अन्य कर्ज भी अदा करा दिये । इन कार्यों से आपका काफी नाम हुआ । आप १८५३ में स्वर्गवासी हुए ।
भारत के स्वतंत्र होने पूर्व तक मेवाड़ राज्य का दीवान पद प्रायः ओसवाल जैनों के द्वारा ही अलंकृत होता आया है। श्री मेहता गोकुलचन्द्रजी कोठारी केशरीसिंहजी, कोठारी छगनलालजी, मेहता बाद के अन्य सवाल पन्नालालजी, मेहता फतेहराजजी, सिंधी बच्छराजजी, जैन दीवान:मेहता भोपालसिंहजी, मेहता जगन्नाथसिंहजी, कोठारी बलवन्तसिंहजी, मेहता तेजसिंहजी, आदि आदि वड़े
Khokkkkk (३६७ ): Kakkkkkkkha