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* जैन गौरव-स्मृतियां
उद्योग के क्षेत्र में जैन समाज बहुत अ बढ़ा हुआ है। इतिहास : यह बात बाताता है कि जैन जाति सदा से अपने पुरुषार्थ और व्यापार के कारण जीवित रही है । ब्रह्मण बौद्ध मुसलमान मराठा आदि जातियाँ राज्य ।। का आश्रय पाकर फलीफूली हैं और राज्याश्रय के अभाव से इन्हें काफी सहन करना पड़ा है । परन्तु जैनजाति सदा से अपने उद्योग के वल से टिकी । रही है। संख्या में अपेक्षाकृत बहुत अल्पं होने पर भी जैन लोगों का भारत में जोप्रभुत्व है वह इस जाति की उद्योग परायणता और व्यापार कुशलता का परिणाम है । भारत के उद्योग और वाणिज्य के विकास में जैन जाति ने : वहुत बड़ा भाग लिया है । जैनजाति ने उद्योग और व्यवसाय के चुनाव में भी अहिंसक भावना को स्थान है । जैनलोग ऐसा व्यापार नहीं करते जिसमें. भारी हिंसा होती हो । जैनधर्म में पन्द्रह कर्मादान ( महापाप के कारण ) बताये गये हैं। इन कर्मादानों का परित्याग करना जैन श्रावक का कर्तव्य है । अतः प्रायः जैन व्यापारी ऐसे व्यापार का चुनाव करते हैं जिसमें विशेष हिंसा नहीं होती है।
___ कला के क्षेत्र में भी जैन समाज ने नवीनता का संचार किया है। अपनी अहिंसक भावना को पत्थर और चित्रों में अंकित कर जैन जाति ने भारतीय कला को नूतनरूप दिया है। इसका भी विशेष उल्लेख यथास्थान . किया जायगा।
इस तरह हम देखते हैं कि धर्म, समाज, राजनीति, उद्योग, कला .. आदि सव क्षेत्रों में जैन जाति की. अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं जिनके : कारण जैन संस्कृति खूब फली-फूली है। संक्षेप में यही जैन संस्कृति का. परिचय है।
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धार्मिक सिद्धांत
जैनधर्म एक सार्वभौम धर्म है । यह किसी चार दीवारी में वन्द या देशकाल की सीमाओं में सीमित रहने वाला नहीं है । यह तो प्रकृति की +
तरह सार्वत्रिक और सर्व कालीन है । यह पवन. की तरह