Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 20
________________ शक्तिमान् नही है जो सर्व गुण कह सके और लिख सके. प्र. ५ जैन मतमें जे क्षेत्र माहविदेहादिक है तहां इहांका कोइ मनुष्य जा सक्ता है कि नही. उ. नही जा सक्ता है क्योंकी रस्तेमें बर्फ पाणी जम गया है और बड़े बडे उंचे पर्वत रस्ते मे है बडी बडी नदीयों और घना जंगल रस्ते मे है अन्य बहुत विघ्न है इस वास्ते नही जा सक्ता है | प्र. ६ . भरत क्षेत्र कौनसा है और कितना लांबा चोडा है । उ. जिसमे हम रहते है यही भरतखंड है इसकी चौडाइ दक्षिणसे उत्तर तक ५२६० किंचित अधिक उत्सेद्धांगुलके हिसाब से कोस होते है और वैताढ्य पर्वतके पास लंबाई कुबक अधिक ९०००० नवे हजार उत्सेद्धांगुलके हिसाब से कोस होते है चीन रूसादि देश सर्व जैन मतवाले भरतखंडके बीचही मानते है यह कथन अनुयोगद्वारकी चूर्णि तथा अंगुल सत्तरी ग्रंथानुसारे है कितने क आचार्य भरतखंडका प्रमाण अन्यतरेंकें योजनों से मानते है परं अनुयोगद्वारकी चूर्णि कर्ता श्री जिनदासगणि क्षमाश्रमणजी तिनके मतकों सिद्धांतका मत नही कहते है । 1 प्र. ७. भरत क्षेत्रमे आज के कालसें पहिला कितने तीर्थंकर हु है उ. इस अवसर्पिणी काल में आज पहिलां चौवीस तीर्थंकर हु है जेकर समुच्चय अतीत कालका प्रश्न पूछते हो तब तो अनंत तीर्थंकर उस भरत खंडमे हो गए है । प्र. ८. इस अवसर्पिणि काल मे इस भरतखंडमें चोवीस तीर्थंकर हुए है तिनके नाम कहो । उ. प्रथम श्री ऋषभदेव १ श्री अजीतनाथ २ श्री संभवनाथ ३ श्री अभिनंदननाथ ४ श्री सुमतिस्वामी ५ श्री पद्मप्रभ ६ श्री सुपार्श्वनाथ ७ श्री चंद्रप्रभ ८ श्री सुविधिनाथ पुष्पदंत ९ श्री शीतलनाथ १० श्री श्रेयांसनाथ ११ श्री वासुपूज्य १२ श्री विमलनाथ १३ श्री अनंतनाथ १४ श्री धर्मनाथ १५ श्री शांतिनाथ १६ श्री कुंथुनाथ १७ श्री अरनाथ १८ श्री मल्लिनाथ १९ श्री मुनिसुव्रतस्वामी २० श्री नमिनाथ २१ श्री अरिष्टनेमि २२ श्री पार्श्वनाथ २३ श्री वर्द्धमानस्वामी महावीरजी २४ ये नाम है. Jain Education International ४ For Private & Personal Use Only AG www.jainelibrary.org

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