Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 100
________________ मरिचकी तरे कटुक होवे, सो कटुकरस नाम कर्म ४८ जिसके उदयसें जीवका शरीरादि हरक, छहेकें समान कसायलारस होवे , सो कसायरस नामकर्म ४९ जिस कर्मके उदयसें जीवके शरीरादिका रस लिंबू, आम्ली सरीषा खट्टा रस होवे , सो खट्टारस नामकर्म ५० जिस कर्मके उदयसें जीवके शरीरादि खांडि, साकरादि समान रस होवे, सो मधुर रस नामकर्म ५१ इति रस नाम कर्म जिसके उदयसें जीवके शरीरमें तथा शरीरके अवयव कठिन कर्कस गायकी जीभ समान होवे, सो कर्कस स्पर्श नामकर्म ५२ जिसके उदयसें जीवका शरीर तथा शरीरके अवयव माखणकी तरे कोमल होवे, सो मृदु स्पर्श नामकर्म ५३ जिसके उदयसें जीवका शरीर तथा अवयव अर्क तूलकी तरे हलकें होवे, सो लघु स्पर्श नामकर्म ५४ जिसके उदयसें लोहेवत् भारी शरीर के अवयव होवे, सो गुरु स्पर्श नामकर्म ५५ जिस कर्मके उदयसें जीवका शरीर तथा अवयव हिम बर्फवत् शीतल होवे, सो शीत स्पर्श नामकर्म ५६ जिसके उदयसें जीवका शरीर तथा अवयव उष्ण होवे, सो उष्ण स्पर्श नामकर्म ५७ जिस कर्मके उदयसें जीवका शरीर तथा शरीरावयव घृतकी तरे स्निग्ध होवें, सो स्त्रिग्ध स्पर्श नामकर्म ५७ जिस कर्मके उदयसें जीवका शरीरावयव राखकी तरे रूखे होवे, सो रुक्ष स्पर्श नामकर्म ५९ इति स्पर्श नाम कर्म नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव ए चार जगें जब जीव गति नाम कर्मके उदयसें वक्र बांकी गति करे, तब तिस जीवकों बांके जाते को जो अपने स्थानमें ले जावे, जैसे बैलके नाक में नाथ तैसे जीवके अंतराल वक्र गतिमें अनुपूर्वीका उदय तथा जो जीवके हाथ पगादि सर्व अवयव यथायोग्य स्थान स्थापन करे, सो अनुपूर्वी नामकर्म. सो चार प्रकार का है, नरकानुपूर्वी १ तिर्यंचानुपूर्वी २ मनुष्यानुपूर्वी ३ देवतानुपूर्वी ४ एवं सर्व ६३ हुइ, जिसके उदयसें हाथी वृषभकी तरे शुभ चलनेकी गति होवे, सो शुभ विहाय गति ६४ जिस कर्मके उदयसें ऊंटकी तरे बुरी चाल गति होवे, सो अशुभ विहाय गति नामकर्म ६५ जिसके उदयसें परकी शक्ति नष्ट हो जावे , परसें गंज्या पराभव करा न जाय, सो पराघात नामकर्म ६६ जिसके उदयसे सासोस्वासके लेनेकी शक्ति उत्पन्न होवे, सो उत्स्वास नामकर्म ६७ जिसके उदयसें जीवांका शरीर उष्ण प्रकाश वाला होवे, सूर्य मंडलवत्, सो आतप नाम कर्म ६८ जिसके उदयसें जीवका शरीर अभष्ण प्रकाशवाला होवे, सो उद्योत नामकर्म, चंद्र मंडलवत् ६८ जिसके उदयसें जीवका शरीर अति भारी अति हलका न - GORAGHAAGORGEAGOOGOAGRAGOAGEACODE | PEGORGEAGUAGDADAGDAGD0GBAGDAGOOGOAT Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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