Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 128
________________ में जैनमतके शास्त्र १ वेद भाष्य २ दंतकथा ३ इतिहासके पुस्तकादिकोंका प्रमाण है ।। इत्यलम् ।। अहमदावादका वासी और पालणपुरमें न्यायाधीश राज्याधिकारी श्रावक गिरधरलाल हीराभाई कृत कितनेक प्रश्न तिनके उत्तर पालिताणेंमें चार प्रकार महा संघके समुदायने आचार्य पद दत्त नाम विजयानंदसूरि अपर प्रसिद्ध नाम आत्माराम मुनि कृत समाप्त हुए है ।। इन सर्व प्रश्नोंत्तरोमें जो वचन जिनागम विरुद्ध भूल सें लिखा होवे तिसका मिथ्या दुःकृत देता हुं । सर्व सुज्ञ जन आगमानुसार सुधार के लिख दीजो, और मेरे कहे उत्सूत्रका अपराध माफ करजो || इति प्रश्नोत्तरावलि नाम ग्रंथ समाप्तम् . 500000000000000000000000000000000000 00GORGEAGOOGOOGUAGRAG00GOOGOAGOOGUAGE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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