Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 110
________________ तरजुमा नीचे लिखते है । संवत् ४७ उष्ण कालका महीना २ दूसरा मिति २० उपर लिखी मितिमें यह संसारी शिष्य द... का...।... यह एक पाणी पीनेका ठाम देने में आया था, यह रोहन दी ( रोहनंदि) का शिष्य और चारण गणके पेतिधमिक (प्रइतिधर्मिक) कुलका आचार्य सेनका निवतन ( है ) I८ पिछला लेख जो ऐसी ही रीती से कल्पसूत्रमें जनाया हुआ एक गण कुल तथा शाखाका कुछक अपभ्रंस और क्षरे हुए नामाकों बतलाता है, सो नंबर २० चित्र १५का लेख है, तिसकी असली नकल नीचे लिके मूजब वंचाती है | पंक्ति पहिली || सिद्धउ नमो अरहतो महावीरस्ये देवनासस्य राज्ञा वासुदेवस्य संवतसरे । ९ + ८ । वर्ष मासे ४ दिवसे १० + १ एतास्या || पंक्ति दूसरी || पूर्ववया अर्यरेहे नियातो गण पुरीध . का कुल व पेत पुत्रीका ते शाखातो गणस्य अर्य-देवदत्त. वन. ॥ पंक्ति तीसरी ।। रयय-क्शेमस्य || पंक्ति ४ ॥ प्रकगीरीणे | पंक्ति ५ मी | हिदिये प्रज. ॥ पंक्ति ६ छछी । तस्य प्रवरकस्य धीतु वर्णस्य गत्व कस्यम. युय मित्र (१) स... दत्तगा | पंक्ति ७ मी ॥ ये...वतो मह तीसरी पंक्तिसें लेके सातमी पंक्तिताईतो सुधारा हो सके तैसा है नही, और मैं तिनके सुधारनेकी मेहनतभी नही करता हुं, क्योंके मेरे पास मुझकों मदत रे तैसी तिसकी लीनी हुइ नकल नही है, इतछठी टीका करनी बस है के नी पंक्तिमें बेटी का शब्द धितु और तिस पीछेका म. युयसो बहुलतासें (माताका) मातु के बदले भूलसें बांचने में आया है, सो लेख यह बतलाता है, के यह अर्पणभी एक स्त्रीने करा था | पंक्ति २ | ३ || दूसरी तीसरीमें लिखे हुए नामवाले आचार्योंके नामोकों यह बक्षीस साथका संबंध अंधेरे में रहता है, पिछले बार बिंदु की जगे दूसरा नमस्कार नमो भगवतो महावीरस्यकी प्रायें रही हुइ है, प्रथम पंक्ति में सिद्धओ के बदले निश्चित शब्द प्रायें करके सिद्धं है, सर ए. कनिंगहामे आ बांचा हुआ अक्षर मेरी समझ मूजब विराम के साथ म है, दूसरा महावीरस्येकी जगें महावीरस्य धरना चाहिये, दूसरी पंक्ति में पूर्व वयाके बदले पूर्ववाये गणके बदले गणतो, काकुलवके बदले० काकुलतो० टे के बदले पेतपुत्रिकातो और गणस्यके बदले गणिस्य वांचनेकी जरुरीआत हरेक कोइकों प्रगट मालुम पडेगी, नामोके संबंध में अर्य-रेहनीय अशक्य रूप है, परंतु जेकर अपने ऐसे मानीयेके हकी ऊपर इका असल खरेखरा पि छले 媽媽不支 क ७०,००,००,GAAJA,००,००,००,००० Jain Education International ९४ S PAGA For Private & Personal Use Only 弟弟 ja,,,,, www.jainelibrary.org

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