Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 119
________________ है २ परं क्रिया नहीं है, सादिकोंभी भक्षण कर जाता है, निर्दय होनेसें ३ तैसें गुरुयों कितनेक में वेष १ उपदेशतो है २ परंतु सक्रिया नही है, ३ मंग्वाचार्यवत् ।। इति चोथा गुरु स्वरूप भेद ||४|| __पांचमा गुरु कोकीला समान है. ५ कोकिला में सुंदर उपदेश (शब्द) तो है, पंचम स्वर गाने से १ और क्रिया आंब की मांजरादि शुचि आहारके खाने रूप है. तथा चाहः ।। आहारे शुचिता, स्वरे मधुरता, नीके निरारंभता || बंधी निर्ममता, वने रसिकता, वाचालता माधवे ।। त्यक्तातद्विज कोकीलं , मुनिवरं दूरात्पुनर्दाभिकं । वंदंते वत खंजनं , कृमि भुजं चित्रा गतिः कर्मणां ।।१।। परंतु रूप नही काकादिसेंभी हीनरूप होनेसें ३ तैसेंही कितनेक गुरुयोंमें सम्यक् क्रिया १ उपदेश २ तोहै, परंतु रूप (साधुका वेष) किसी हेतु से नहीं है, सरस्वतीके छुडाने वास्ते यति वेष त्यागि कालिकाचार्यवत् ।। इति पांचमा गुरु स्वरूप भेद ||५|| छठा गुरु हंस समान है. ६ हंसमे रूप प्रसिद्ध है १ क्रिया कमल नालादि आहार करने से अच्छी है २ परंतु हंसमे उपदेश (मधुर स्वर) पिक शुकादिवत् नही है ३ तैसें ही कितने एक गुरुयों में साधुका वेष १ सम्यक् क्रियातो है २ परंतु उपदेश नही, गुरुने उपदेश करने की आज्ञा नही दीनी है, अनधिकारी होने से धन्यशालिभद्रादि महाऋषियोंवत् ।। इति छठा गुरु स्वरूप भेद ||६|| सातमा गुरु पोपट तोते समान है. ७ तोता इहां बहुविध शास्त्र सूक्त कथादि परिज्ञान प्रागल्यवान् ग्रहण करना. तोता रूप करके रमणीय है १ क्रिया आंब कदली दामित फलादि शुचि आहार करता है. इस वास्ते अपनी है २. उपदेश वचन मधुरादि तोतेका प्रसिद्ध है ३ तैसें कितनेक गुरु वेष १ उपदेश २ सम्यक् क्रिया. ३ तीनो करके संयुक्त है, श्रीजंबु श्रीवज्रस्वाम्यादिवत् इति सातमा गुरु स्वरूप भेद ||७|| आठमा गुरु काक समान है. ८ जैसे काकमें रूप सुंदर नही है १, उपदेशभी नही, ककुया शब्द बोलनेसें २ क्रियाभी अपनी नही है, रोगी, बूढे बलदादिकोंके आंख कढ - Docentencomendado Ocean Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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