Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 115
________________ हजार कोस लांबी सिद्ध होती है, इस कालके लोकतो इस कथन को एक मोटी गप्प समान समझेंगे, इस वास्ते आपसें यह प्रथम पूछते है कि जैनमतके शास्त्र मुजब आप कितना बडा प्रमाण अंगुलका योजन मानते हो ? उ. जैनमतके शास्त्र प्रमाणे तो विनीता नगरी और द्वारकांका मापा और सर्व द्वीप, समुद्र, नरक, विमान, पर्वत प्रमुखका मापा जिस प्रमाण योजनसें कहा है सो प्रमाण योजन उत्सेधांगुलके योजनसें दश गुणा और श्री महावीर स्वामीके हाथ प्रमाणसें दो हजार धनुषके एक कोस समान (श्री महावीरस्वामी के मापे सें सवायोजन) पांच कोस जो क्षेत्र होवे सो प्रमाण योजन एक होता है, ऐसे प्रमाण योजनसें पूर्वोक्त विनीता जंबूद्वीपादिका मापा है, इस हिसाबसें विनीता द्वारकांदि नगरीयां श्री महावीर के प्रमाण के कोसों से चौडीयां ४५ पैतालीस कोस और लंबीयां साठकोस प्रमाण सिद्ध होतीयां है, इतनी बडी नगरी को कोइभी बुद्धिमान् गप्प नही कह सकता है, क्योंकि पीछले काल में कनोज नगरी में ३०००० तीस हजार दुकानो तो पान वेचनेवालोंकी थी, ऐसे इतिहास लिखनेवाले लिखते है तो, सो नगर बहुत बडा होना चाहिये. अन्यभी इस काल में पैकिन नंदन प्रमुख बडे बडे नगर सुने जाते है, तो चौथे तीसरे आरेके नगर इनसें अधिक बड़े होवे तो क्या आश्चर्य है, और जो चारसौ गुणा तथा एक हजार गुणा उत्सेधांगुलके योजनसें प्रमाणांगुलका योजन मानते है, वे शास्त्रके मतसें नही है, जो श्री अनुयोगद्वार सूत्रके मूल पाठमें ऐसा पाठ है, उत्सेधांगुलसें सहस्सगुणं पमाणंगुलं भवति इस पाठका यह अभिप्राय है कि एक प्रमाणांगुल उत्सेधांगुलसें चारसौ गुणीतो लांबी है, और अढाइ उत्सेधांगुल प्रमाण चौडी है, और एक उत्सेधांगुल प्रमाण जाडी (मोटी) है, इस प्रमाण अंगुलके जब उत्सेधांगुल प्रमाण सूची करीये तब प्रमाणांगुलके तीन टुकडे करीये, तब एक टुकडा एक उत्सेधांगुल प्रमाण चौडा और एक उत्सेधांगुल प्रमाण जाडा (मोटा) और चारसौ उत्सेधांगुलका लंबा होता है, ऐसा ही दूसरा टुकडा होता है, और तीसरा टुकडा एक उत्सेधांगुल प्रमाण चौडा और इतनाही जाडा (मोटा) और दोसो उत्सेधांगुल प्रमाण लंबा होता है, अब इन तीनों टुकडोंकों क्रमसें जोडीये तब एक उत्सेधांगुल प्रमाण चोडी और एक उत्सेधांगुल प्रमाण जाडी (मोटी) और एक हजार उत्सेधांगुल प्रमाण लांबी आठ हजार गुणी कहता है, सो इस ९९ Jain Education International ०००० For Private & Personal Use Only ०७२०७२६ www.jainelibrary.org

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