Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 113
________________ होवे के जैन दंत कथा ( जैन श्वेतांबर लिखे हुए शास्त्रों की बात ) टीका के असाधारण कायदे हेतु नही रखनी चाहिये, अर्थात् तिसमेके इतिहास संबंधी कथनो अथवा दूसरे पंथो की दंत कथा में सें मिली हुई दूसरी स्वतंत्र खबरोंसें पुष्टी मिलती होवे तो, सो माननी चाहिये, और जो ऐसी पुष्टी न होवे तो जैनमतकी कहनी (स्यादवा) तिसकों लगानी चाहिये, तैसें सखसौंकों उत्तेजन देनेवाला है, कल्पसूत्रकी साथ मथुराके शिला लेखोंका जो मिलतापणा है, सो दूसरी यह बात भी तबलाता है कि इस मथुरां सहरके जैनलोक श्वेताबरी थे | इति डाक्तर बूलर || अब हम (इस ग्रंथके कर्ता) नी इन लेखोंकों वांचके जो कुछ समझे है सोइ लिख दिखलाते है || जैनमतमें वाचक १ दिवाकर २ क्षमाश्रमण ३ यह तीनो पदके नाम जो आचार्य इग्यारे अंग, और पूर्वोके पढे हुए थे तिनकों देनेमें आते थे, जैसे उमास्वातिवाचक १ सिद्धसेन दिवाकर २ देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण ३, इस वास्ते मथुरांके शिला लेखो में जो वाचकके नाम से आचार्य लिखे है, वे सर्व इग्यारे अंग और पूर्वोके कंठाग्र ज्ञानवाले थे, और सुस्थित नामे आचार्यका नाम जो बूलरसाहिबने लिखा है सो सुस्थित नामे आचार्य विरात् तीसरे सैकेमे हुआ है, तिससें कोटिक गणकी स्थापना हुइ है, और जो वइरी शाखा लिखी है सो विरात् ५८५ वर्षे स्वर्ग गये, वज्रस्वामीसें स्थापन हुइथी वइरी शाखा के विना जो कुल और शाखा के आचार्य स्थापनेवालें सुस्थित आचार्य के लगभग कालमें हुए संभव होते है, इन लेखोंकों देखके हम अपने भाइ दिगंबरोंसें यह विनती करते है कि जरा मतका पक्षपात छोड के इन लेखों की तर्फ जरा ख्याल करोके इन लेखों में लीखे हुए गए, कुल शाखा के नाम श्वेतांबरोंके कल्पसूत्रके साथ मिलते है, वा तुमारेभी किसी पुस्तकके साथ मिलते है, मेरी समझमें तो तुमारे किसी पुस्तकमें ऐसे गण, कुल, शाखा के नाम नही है, जे मथुरांके शिला लेखों के साथ मिलते आवे इससें यह निसंदेह सिद्ध होता है, कि मथुरांके शिला लेखों में सर्व गण, कुल शाखा, आचार्योंके नाम श्वेतांबरोंके है, तो फेर तुमारे देवनसेनाचार्यनें जो दर्शन सार ग्रंथमें यह गाथा लिखी है कि बत्तीस बाससए, विक्कम निवस्स, मरण पत्तस्स, सोरछे वल्लहीए, सेवक संघस मुपन्नो ||१|| अर्थ विक्रमादित्य राजाके मरां एकसौ छत्तीस १३६ वर्ष पीछे सोरठ देशकी वल्लभी नगरीमें श्वेतपट (श्वेतांबर संघ उत्पन्न हुआ) यह कहनां ९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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