Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 73
________________ होवे के जेकर क्रोध चढेतो मुख के पुंकारेसें कितनेही देशांकों बालके भस्म कर देवे, तिसकों तेजोलेश्या लब्धि कहते है. आहारएलद्धी २४-चउदह पूर्वधर मुनि तीर्थंकरकी ऋद्धि देखने वास्ते, १ वा कोइ अर्थ अवगाहन करने वास्ते, अथवा अपना संशय दूर करने वास्ते अपने शरीरमें हाथ प्रमाण स्फटिक समान पूतला काढके तीर्थंकरके पास भेजता है, तिस पूतलेसें अपने कृत्य करके पाछा शरीर में संहार लेता है, तिसकों आहारक लब्धि कहते है. सीयलेसा लद्धी १५-तपके प्रभावसें मुनिकों ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है के जिससें तेजोलेशाकी उश्नताकों रोक देवे, वस्तुकों दग्ध न होने देवे, तिसकों शीतलेशा लब्धि कहते है. वेउव्विदेह लद्धी २६-जिसकी सामर्थसें अणुकी तरें सूक्ष्म क्षण मात्रमें हो जावे , मेरुकी तरे भारी देह कर लेवे, अर्क तूलकी तरें लघु हलका देह कर लेवे, एक वस्त्र में से वस्त्र करोकों और एक घटमें से घट करोकों करके दिखला देवे, जैसा इत्ने तैसा रूप कर सके, अधिक अन्य क्या कहिये , तिसका नाम वैक्रिय लब्धि है. ___ अखीणमहाणसी लद्धी २७-जिसके प्रभावसें जिस साधुनें आहार लाणा है, जहां तक सो साधु न जीमे तहां तक चाहो कितनेही साधु तिस भिक्षामेंसे आहार करे तोभी खूटे नही, तिसकों अक्षीणमहानसिक लब्धि कहते है. पुलाय लद्धी २८-जिसके प्रभावसे धर्मकी रक्षा करने वास्ते धर्मका द्वेषी चक्रर्वत्त्यादिकों सेना सहित चूर्ण कर सके, तिसकों पुलाकलब्धि कहते है. पूर्वोक्त येह लब्धियां पुन्यके और तपके और अंतःकरणके बहुत शुद्ध परिणामोके होनेसें होवे है, ये सर्व लब्धियां प्रायें तीसरे चौथे आरे में ही होतीयां है, पंचम आरेकी शुरुआतमेंभी होतीयां है. प्र.१३४. श्री महावीरस्वामीकों ये पूर्वोक्त लब्धियां २८ अठावीस थी? उ. श्री महावीरजीकोंतो अनंतीयां लब्धियां थी. येह पूर्वोक्ततो २८ अठावीस किस गिनती में है, सर्व तीर्थंकराकों अनंत लब्धियां होती है. प्र.१३५. इंद्रभूति गौतमकों ये सर्व लब्धियो थी ? उ. चक्री , बलदेव , वासुदेव ऋजुमति, ये नही थी, शेष प्राये सर्वही GOOGOOGSAGDAGDAGOGRAGSAGAGRAGHAGORN . 00000000000000000000000000000GEAGOOGen Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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