Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 75
________________ प्र. १४२. बुद्धके शास्त्रोंमें बुद्धका किसतरेंका चरित है, जिसमें बुद्ध सर्वज्ञ नही है ? उ. बुद्धका बुद्धके शास्त्रानुसारे यह चरित जो आगे लिखते है, तिसें बुद्ध सर्वज्ञ नही सिद्ध होता है. १ प्रथम बुद्धने संसार छोड के निर्वाणका मार्ग जानने वास्ते योगीयांका शिष्य हुआ, वे योगी जातके ब्राह्मणथे और तिनकों बड़े ज्ञानीभी लिखा है, तिनके मतकी तपस्यारूप करनी सें बुद्धका मनोर्थ सिद्ध नही हुआ, तब तीनको छोडके बुद्ध गया के पास जंगलमें जा रहा २, इस उपरके लेखसेतो यह सिद्ध होता है कि बुद्ध कोइ ज्ञानी बुद्धिमानतो नही थी, नहीतो तिनके मतकी निष्फल कष्ट किया काहेको करता, और गुरुयों के छोडने सें स्वच्छंदचारी अविनीतभी इसी लेखसें सिद्ध होता है १ पीछे बुद्धने उग्र ध्यान और तप करने में कितनेक वर्ष व्यतीत करे २ इस लेखसें यह सिद्ध होता है कि जब गुरुयोंकों छोड़ा निकम्मे जानके तो फेर तिनका कथन करा हुआ, उग्र ध्यान और तप निष्फल काहेको करा, इससेंभी तप करता हुआ, जब मूर्च्छा खाके पडा तहां तकभी अज्ञानी था, ऐसा सिद्ध होता है १ पीछे जब बुद्धने यह विचार कराके केवल तप करने से ज्ञान प्राप्त नही होता है, परंतु मनके उघाड करने से प्राप्त करना चाहिये, पीछे तिसने खानेका निश्चय करा और तप छोडा २ जब ध्यान और तप करने से मन न उघडा तो क्या खाने से मन उघड शकता है, इससे यहभी तिसकी समझ असमंजस सिद्ध होती है, १ पीछे अजपाल वृक्षके हेठे पूर्वं तर्फ बैठके इसने ऐसा निश्चय कराके जहां तक मैं बुद्ध न होवांगा तहां तक यह जगा न छोडुंगा, तिस रात्रि में इसकों इच्छारोध करनेका मार्ग और पुनर्जन्मका कारण और पूर्व जन्मांतरोका ज्ञान उत्पन्न हुआ, और दूसरे दिनके सवेरेके समय इसका मन परिपूर्ण उसका, और सर्वोपरि केवलज्ञान उत्पन्न हुआ २ अब विचारीये जिसने उग्रध्यान और तप बोध दीया और नित्यप्रेत खानेका निश्चय करा तिसकों निर्हेतुक इच्छारोध करनेका और पुनर्जन्मके कारणोंका ज्ञान कैसें हो गया, यह केवल अयौक्तिक कथन है, मोद्गलायन और शारिपुत्र और आनंदकी कल्पनासें ज्ञानी लोको में प्रसिद्ध हुआ है १, बुद्धने यह कथन करा है, आत्मा नामक कोइ पदार्थ नही है, आत्मातो अज्ञानियोने कल्पन करा है २, जब बुद्धने ज्ञानमें आत्मा नही देखा तब केवलज्ञान किसकों हुआ, और बुद्धने पुनर्जन्मका कारण किसका देखा, और पूर्व जन्मान्तर करने वाला किसकों देखा, और ५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only besser www.jainelibrary.org

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