Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 36
________________ से जीव अलग है ३ पांच भूत है वा नही ४ जैसा इस जन्म मे जीव है जन्मांतरमें ऐसी ही होवेगा के अन्य तरेंका होवेगा ५ मोक्ष है के नही ६ देवते है के नही ७ नरकी है के नही ८ पुन्य है के नही ९ परलोक है के नही १० मोक्षका उपाय है के नही ११ इनके दूर करने का संपूर्ण कथन विशेषावश्यक मे है तिस दीनही चंपाके राजा दधिवाहनकी पुत्री कुमारी ब्रह्मचारणी चंदन बालाने दीक्षा लीनी. यह बडी शिष्यणी हुइ. इसके साथ कितनीही स्त्रीयोंने दीक्षा लीनी. दूसरी देशनामे यह बनाव बना था । प्र.६०. गणधर किसकों कहते है। उ. जिस जीवनें पूर्व जन्ममे शुभ करणी करके गणधर होने का पुन्य उपार्जन करा होवे सो जीव मनुष्य जन्म लेके तीर्थंकरके साथ दीक्षा लेता है अथवा तीर्थंकर अहँतको जब केवलज्ञान होता है तिनके पास दीक्षा लेता है, और बडा शिष्य होते है: तीर्थंकर के मुखमें त्रिपदी सुनके गणधर लब्धिसें चौदहे पूर्व रचता है और चार ज्ञानका धारक होता है तिसकों तीर्थंकर भगवंत गणधर पद देते है और साधुयों के समुदाय रूप गणकों धारण करता है, तिसकों गणधर कहते है । प्र.६१. श्री महावीरजीके कितने गणधर हुए थे । उ. इग्यारें गणधर हुए थे, तिनके नाम उपर लिख आए है। प्र.६२. संघ किसकों कहते है। उ. साधु १ साध्वी २ श्रावक ३ श्राविका ४ इन चारोंको संघ कहते है। प्र.६३. श्री महावीर भगवंतके संघमे मुख्य नाम किस किसका था । उ. साधुयोंमे इंद्रभूति गौतम स्वामी नाम प्रसिद्ध १ साधवीयोंमें चंपा नगरीके दधिबाहन राजाकी पूत्री साधवी चंदनबाला २ श्रावकों में मुख्य श्रावस्ति नगरीके वसने वाले संख १ शतक २ श्राविकायोंमें सुलसा ३ रेवती ४ सुलसा राजगृहके प्रसेनिजित राजाका सारथी नाग तिसकी आर्या, और रेवती मेंढिक ग्रामकी रहनेवाली धनाढ्य गृह पत्नी थी। प्र.६४. श्री महावीरस्वामीने किसतरेंका धर्म प्ररुप्या था । उ. सम्यक्त पूर्वक साधुका धर्म और श्रावकका धर्म प्ररूप्या था । - GDAGOGRAGDAGOREAGOOGGAAGHASAGAR Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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