Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 41
________________ शास्त्र भूलेतो नही थे, परंतु तिस कालमें इतनाही कंठ था, शेष अल्प बुद्धिके प्रभावसे पहिलाही भूल गया था, तिस स्कंधिलाचार्यके पीछे आठमे पाट और श्री वीरसें ३२ में पाट देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हुए, तिनका वृत्तांत ऐसे जैन ग्रंथोमें लिखा है, सोरठ देशमें वेलाकूलपत्तनमें अरिदमन नामे राजा, तिसका सेवक काश्यप गोत्रीय कामर्द्धि नाम क्षत्रिय, तिसकी आर्या कलावती, तिनका पत्र देवर्द्धिनामे, तिसने लोहित्य नामा आचार्यके पास दीक्षा लीनी, इग्यारे अंग और पूर्व गत ज्ञान जितना अपने गुरुकों आताथा, तितना पढ़ लिया, पीछे श्री पार्श्वनाथ अहँतकी पदावलिमे प्रदेशी राजाका प्रतिबोधक श्रीकेशी गणधरके पद परंपरामें श्री देवगुप्त सूरिके पासों प्रथम पूर्व पठन करा, अर्थसें, दूसरे पूर्वका मूल पाठ पढते हुए श्री देवगुप्त सूरि काल कर गये, पीछे गुरुने अपने पद उपर स्थापन करा. एक गुरुने गणि पद दीना, दूसरेने क्षमाश्रमण पद दीना, तब देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण नाम प्रसिद्ध हुआ. तिस समयमें जैन मतकै ५०० पांचसौ आचार्य विद्यमान थे, तिन सर्वमें देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण युगप्रधान और मुख्याचार्य थे, वे एकदा समय श्री शत्रुजय तीर्थमें वज्रस्वामि प्रतिष्ठा हुइ. श्री ऋषभदेवकी पितलमय प्रतिमाकों नमस्कार करके कपर्दि यक्षकी आराधना करते हुए. तब कपर्दि यक्ष प्रगट होके कहने लगा, हे भगवान् , मेरे स्मरण करनेका क्या प्रयोजन है, तब देवगिणी क्षमाश्रमणजीने कहा, एक जिनशासनका काम है, सो यह है कि बारें वर्षी दुकालके गये, श्री स्कंधिलाचार्यने माथुरी वाचना करी है, तोभी कालके प्रभावसें साधुयोंकी मंद बुद्धिके होने से शास्त्र कंठसें भूलते जाते है. कालांतरमें सर्व भूल जावेंगे. इस वास्ते तुम साहाय्य करो. जिस्से मै ताड पत्रो उपर सर्व पुस्तकों का लेख करूं, जिससें जैन सास्त्रकी रक्षा होवे. जो मंदबुद्धिवालाभी होवेगा सोभी पत्रों उपरि शास्त्राध्ययन कर सकेगा, तब देवतानें कहा मैं सान्निध्य करुंगा, परंतु सर्व साधुयोंकों एकठे करो और स्याही ताड पत्र बहुत संचित करो, लिखारियोंको बुलाउ, और साधारण द्रव्य श्रावकोंसें एकठा करावो, तब श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणनें पूर्वोक्त सर्व काम वल्लभीनगरीमें करा, तब पांचसौ आचार्य और वृद्ध गीतार्थोने सर्वांगोपांगादिकांके आलापक साधु लेखकोने लिखे, खरडा रुपसें, पीछे देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणजीने सर्व अंगोपांगो के आलापक जोड के पुस्तक रुप करे. परस्पर सूत्रांकी भुलावना जैसे भगवती मे जहा पन्नवणाए इत्यादि अति देशकरे सर्व शास्त्र शुद्ध करके लिखवाए. देवताकी सान्निध्यतासें GOGORACACACACACACA I BaoCopcoộc QC QC QC QCG Giaceae Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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