Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 48
________________ Jain Education International अथ छेद सूत्राणि १६८ । ० । २२२५ । १८३० । । ० । ४२२३ १ । | दशाश्रुतस्कंध २८ | सूत्रं | बृहत्कल्प ४७३ ४२००० । ८७४७३ २९/ सूत्रं लघु ८००० बृहत् १२००० १४००० विशेष ११००० ६०० ६००० १०३६१ | ३३६२५ ५०५८६ ११३३ ३१२५ ३१३० ७३८८ For Private & Personal Use Only व्यवहार ३० सूत्रं | पंचकल्प ३१ सूत्रं जीतकल्प सूत्रं २०५ ३१२४ ७००० २२३२९ १००० विशेषचूर्णि ११००० २८००० ५ | निशिथसूत्रं ८१५ ४८२१५ ३२ लघु ७४०० घृहत् १२००० www.jainelibrary.org 10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 00000060GOOGOAGOA00000000000006A6A6AGACAA6A6A6AGAGAOOL

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