Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust
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कहा है।
प्र. ५६. अछछेरा किसकों कहते है ।
उ. जो वस्तु अनंते काल पीछे आश्चर्य कारक होवे तिसकों अछ्छेरा कहते है, क्योंकि कोइभी तीर्थंकरकी देशना निःफल नही जाती है और श्री महावीरजीकी देशना निष्फल गइ, इस वास्ते इसको अछछेरा कहते है ।
प्र. ५७. श्री महावीरजीतो केवलज्ञानसें जानते थे कि मेरी प्रथम देशनासें किसीकोंभी कुछ गुण नही होवेगा, तो फेर देशना किस वास्ते दीनी.
उ. सर्व तीर्थंकरोंका यह अनादि नियमहै कि जब केवलज्ञान उत्पन्न होवे तब अवश्यही देशना देते है तिस देशनासें अवश्यमेव जीवांकों गुण प्राप्त होता हैं, परं श्री वीरकी प्रथम देशनासें किसीको गुण न हुआ, इस वास्ते अछछेरा कहा है।
प्र. ५८. श्री महावीर भगवंते दूसरी देशना किस जगें दीनीथी ।
उ. जिस जगें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था तिस जगासें ४८ कोसके अंतरे अपापा नामा नगरी थी, तिसमें इशान कोनमे महासेन वन नामे उद्यान था तिस वनमें श्री महावीरजी आए, तहां देवतायोने समवसरण रचा. तिसमें बैठके श्री महावीर भगवंते देशना दूसरी दी.
प्र. ५९. दूसरी देशना सुनने वास्ते तहां कोन कोन आये थे ।। और तिस दूसरी देशना में क्या बड़ा भारी बनाव बना था और किस किसने दीक्षा लीनी, और भगवंतके कितने शिष्य साधु हुए, और बडी शिष्यणी कौन हुइ.
उ. चार प्रकारके देवता और चार प्रकारकी देवी मनुष्य, मनुष्यणी इत्यादि धर्म सुननेकों आये थे ।
__ भगवंतकी देशना सुनके बहुत नर नारी अपापा नगरीमें जाके कहने लगे, आजतो हमारी पुन्यदशा जागी जो हमने सर्वज्ञके दर्शन करे, और तिसकी देशना सुनी हमनेतो ऐसी रचनावाला सर्वज्ञ कदेइ देखा नही, यह वात नगर मे विस्तरी तिस अवरमें तिस अपापा नगरीमें सोमल नामा ब्राह्मणनें यज्ञ करनेका प्रारंभ कर रखा था, तिस यज्ञके कराने वाले इग्यारें ब्राह्मणोंके मुख्याचार्य बुलवाये थे, तिनके नामादि सर्व ऐसे थे, इंद्रभूति १ अग्निभूति २
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