Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 33
________________ भद्र प्रति- | महा भद्र सर्वतो छठ अतुम सर्वपा | दिक्षा सर्व काल तप उर मा तप तप भद्र |तप तप रणां दिन पारणा एकत्र तप | करै दिन २ |४ |१० | २२९ | १२ ३४९ १ १२ वर्ष मास ६ । दिन १५ प्र.५१. श्री महावीरजीकों दीक्षा लीये पीछे कितने वर्ष गये केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था। उ. १२ वर्ष ६ मास ऊपर १५ पंदरादिन इतने काल गये पीछे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था । प्र. ५२. श्री महावीरजीकों केवलज्ञान कैसी अवस्थामें और किस जगें, उत्पन्न हुआ था। उ. वैशाख शुदि १० दशमीके दिन पिछले चौथे पहरमें जूंभिक गाम नगरके बाहिर ऋजुबालुका नामे नदीके कांठे उपर वैयावृत्त नामा व्यंतर देवताके देहरेके पास श्यामाक नामां गृहपतिके खेतमें साल वृक्षके नीचे गाय दोहने के अवसरमें जैसें पगथलीयोंके भार बैठते है तैसें उत्कटिका नाम आसने बैठे आतापना लेनेकी जगें आतापना लेते हुए तिस दिन दूसरा उपवास छठ भक्त पाणिरहित करा हुआ था. शुक्लध्यान के दूसरे पादमे आरूढ हुआकों केवलज्ञान हुआ था । प्र.५३. भगवंतकों जब केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था तब तिनकी कैसी अवस्था हुई थी। उ. सर्वज्ञ सर्वदर्शी अरिहंत जिन केवली रूप अवस्था हुई थी। प्र. ५४. भगवंतकी प्रथम देशनासें किसीकों भान हुआ था । उ. नही ।। सुनने वालेतो थे, परंतु किसीकों तिस देशनासें गुण नही उत्पन्न हुआ। प्र.५५. प्रथम देशना खाली गइ तिस बनावकों जैन शास्त्रमें क्या नाम कहते है। . उ. अछ्छेराभूत अर्थात् आश्चर्यभूत जैन शास्त्रमें इस बनावका नाम |RAMNawww G00000GOAGOOG00GBAGAGAGUAGOAGUAGARL AGDAGDAGDAGOGAG80GOAG0000AGUAGUAGO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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