Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18 Author(s): Rameshchandra Jain Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation View full book textPage 6
________________ शतक, आत्मसाधना सूत्र, विराग सरिता तथा लघुतत्त्वस्फोट, अपराध क्षणभर का (कॉमिक्स) इसप्रकार २६ पुष्प प्रकाशित किये जा चुके हैं। धर्म की कहानियाँ भाग - १८ के रूप में पौराणिक कहानियों के अतिरिक्त अपने समय की सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती रूपवती जैन 'किरण' द्वारा लिखित दो नाटकों को प्रकाशित किया जा रहा है। इन नाटकों को पढ़कर पाठकों को एक अपूर्व आनन्द का अनुभव तो होगा ही, साथ ही उन्हें इनका मंचन करने का भाव भी आये बिना नहीं रहेगा। इसीप्रकार इसमें डॉ. महावीर शास्त्री द्वारा भी सहज बोधगम्य एवं सरल-सुबोध शैली में लिखी गई दो कहानियाँ शामिल की गई हैं। इनका सम्पादन एवं वर्तनी की शुद्धिपूर्वक मुद्रण कर पण्डित रमेशचन्द जैन शास्त्री, जयपुर ने इन्हें और भी सुन्दर एवं आकर्षक बना दिया है। अतः हम सभी आभारी हैं। आशा है पाठकगण इनसे अपने जीवन में पवित्रता एवं सुदृढ़ता प्राप्त कर सन्मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल करेंगे। जैन बाल साहित्य अधिक से अधिक संख्या में प्रकाशित हो । - ऐसी हमारी भावी योजना है । इस सन्दर्भ में आपके बहुमूल्य सहयोग व सुझाव अपेक्षित हैं। साहित्य प्रकाशन फण्ड, आजीवन ग्रन्थमाला शिरोमणि संरक्षक, परमसंरक्षक एवं संरक्षक सदस्यों के रूप में जिन दातार महानुभावों का सहयोग मिला है, हम उन सबका भी हार्दिक आभार प्रकट करते हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में भी सभी इसी प्रकार सहयोग प्रदान करते रहेंगे। विनीतः मोतीलाल जैन अध्यक्ष प्रेमचन्द जैन साहित्य प्रकाशन प्रमुख आवश्यक सूचना पुस्तक प्राप्ति अथवा सहयोग हेतु राशि ड्राफ्ट द्वारा "अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, खैरागढ़" के नाम से भेजें। हमारा बैंक खाता स्टेट बैंक आफ इण्डिया की खैरागढ़ शाखा में है । (४)Page Navigation
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