Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 9
________________ अपनी बात जैन धर्म एक विशुद्ध महान आध्यात्मिक धर्म है। इस शाश्वत आत्मधर्म का संबंध किसी जाति विशेष से कभी नहीं रहा। सभी जाति के मानवों ने इस जैन धर्म का पालन कर आत्म-कल्याण और विश्वशांति का लक्ष्य पूर्ण किया है। वैसे भी कोई धर्म यदि किसी जाति विशेष से संबद्ध होकर रहे तो वह ज़्यादा समय तक टिक नहीं सकता। जैन धर्म अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक प्रवर्तित रहेगा। यह ज़रूर है कि समय के उतार-चढ़ाव के कारण जैन धर्म भी प्रभावित होता रहा है। किंतु ऐसा भी काल रहा जब जैन धर्म का डंका बजा करता था। कैसा भी समय रहा हो, कैसी भी परिस्थितियाँ रही हों किंतु जैन धर्म की तथा जैनाचार्यों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने कभी भी अपने मूल-सिद्धांतों तथा शुद्धाचरण के साथ समझौता नहीं किया। विश्वशांति के लिए कैसा जीवन जीना चाहिए, इसका साक्षात् उदाहरण जैन समुदाय है। जैन धर्म के अनुयायियों ने अपनी मांगों को लेकर, अपने अधिकारों के लिए कभी भी कोई हिंसक आंदोलन नहीं किया, जिससे समाज या राष्ट्र की शांति भंग हुई हो। उन्होंने सदा अपनी बात को विन्रम तथा गरिमापूर्ण तरीके से रखा है। अधिकार न मिलने पर भी धैर्य रखा है न कि इसकी खातिर हथियार उठाकर बेगुनाहों के कत्ले आम किए हैं, जबकि ऐसी घटनाओं से अधिकांश अन्य धार्मिक संप्रदायों के इतिहास भरे पड़े हैं। जैन धर्म की नीति पूरे विश्व के लिए प्रेरणास्रोत है। मुगल काल में अनेक जैन मंदिरों तथा मूर्तियों को भी तोड़ा गया। देश में आज भी कई हिंदू तीर्थ ऐसे हैं जो मूलतः जैनों के थे। आज भी कितने ही स्थानों पर अधिकारों का हनन हो जाता है; किंतु जैन इसके लिए अहिंसक आंदोलन ही करते हैं। कहीं कोई मौन जुलूस निकालता है, कहीं कोई उपवास करता है, कहीं कोई विरोध-पत्र ही भेजता है, कहीं शिष्ट मंडल अपनी बात लेकर प्रधानमंत्री या अन्य संबंधित मंत्रियों से मिलता है। अपने निहित स्वार्थों के लिए जैनों ने कभी आवेश या आवेग में आकर राष्ट्र की शांति भंग करने का प्रयास नहीं किया। आज के इस युग में जहाँ बात-बात पर पूरे खानदान को गोलियों से भून दिया जाता हो, दूसरे संप्रदाय से विद्वेष के कारण उनकी बस्तियों में दंगे करवाए जाते हों; धार्मिक कट्टरता से प्रेरित होकर लाखों बेगुनाहों की जान ले ली जाती हो, जीभ के

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