Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 14
________________ | वह मूर्खता का युग गया | मैं हिंदू हूँ, ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता हूँ। कम से कम मेरी परंपरा ने मुझे यही विश्वास दिया है। पर मैं हृदय से जैन धर्म का भक्त हूँ। कोई झगड़े की बात तो जैन धर्म कहता ही नहीं है। वह मूर्खता का युग तो चला गया, जब हम जैन मंदिर में जाना भी पाप समझते थे। वह मूर्खता तो समाप्त हुई, पर दूसरी मूर्खता समाप्त होनी चाहिए, कि हम दूसरे को भिन्न समझें। जैन धर्म नास्तिक नहीं है। जीव की सत्ता में विश्वास रखने वाला नास्तिक हो ही नहीं सकता। मेरा तात्पर्य केवल इतना ही है कि हमने जैन धर्म को समझने की चेष्टा नहीं की है। इसलिए हम अच्छे हिंदू नहीं बन पा रहे हैं। मैं तो यही कहूँगा कि भगवान महावीर की अमर वाणी यदि भूल से भी किसी के कान में पड़ जाए, तो उसका कल्याण हो जाएगा। ('हिंदुओं के आराध्य-भगवान महावीर' निबंध के चयनित अंश)। -डॉ० परिपूर्णाचंद वर्मा आत्म-कल्याण और समाज कल्याण || महावीर की विचारधारा जहाँ एक अध्यात्मवादी साधन के अनुकूल थी, वहाँ जन-सेवा की मनोवृत्ति भी इसमें पूर्णतः प्रस्फुटित होती थी। महावीर स्वामी की इन भावनाओं पर आचरण करने से मनुष्य निःसंदेह आत्म-कल्याण और समाज कल्याण दोनों की दृष्टि से सर्वोच्च स्थान तक पहुँच सकता है। ('अहिंसा और अपरिग्रह के प्रतीक महावीर स्वामी' पुस्तक से)। -पं० श्रीराम शर्मा आचार्य | जैन धर्म की प्राचीनता || _ विद्वानों का अभिमत है कि यह धर्म प्रागैतिहासिक और प्राग्वैदिक है। सिंधुघाटी की सभ्यता से मिली योग-मूर्ति तथा ऋग्वेद के कतिपय मंत्रों में ऋषभ तथा अरिष्टनेमि जैसे तीर्थंकरों के नाम इस विचार के मुख्य आधार हैं। भागवत् और विष्णुपुराण में मिलने वाली जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की कथा भी जैन धर्म की प्राचीनता को व्यक्त करती है। -डॉ० विशुद्धानंद पाठक व डॉ० जयशंकर मिश्र (भारतीय इतिहास और संस्कृति, पृ० 199)

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