Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 41
________________ संख्या बढ़ाने के पक्ष में कभी नहीं रहा। उसका विश्वास है वस्तु का जैसा स्वभाव है, यथार्थ सत्य है हम उसे वैसा ही बतलाएँगे, अब कोई इस बात को माने तो उसका स्वागत है, और न माने तो न माने। सिर्फ अपनी संख्या बढ़ाने के लिए हम सत्य का रास्ता नहीं छोड़ सकते। इसलिए जिन वीरों को आत्म-पुरुषार्थ के सिद्धांत पर विश्वास हुआ, उन्होंने ही जैन धर्म अपनाया। चमत्कार प्रिय लोगों को यह मार्ग कठिन दिखाई दिया। शायद यही कारण भी है कि जैन धर्म के अनुयायियों की संख्या कम है। 00 जैन दर्शन आस्तिक है ___ "दर्शनान्तरेषु जैनदर्शनं नास्तिकमिति प्रतिपादितमस्ति, तस्य च कारणं वेदानां प्रामाण्यस्वीकाराभाव एव। किन्त्वेतद्विषये 'नास्तिक' शब्दो न युज्यते। यतो हि 'अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः' (पा० सू० 4/4/30) इत्यनुसारं नास्ति दिष्टमिति मतिरस्ति यस्य स नास्तिक इत्येवार्थं शब्दोऽयं कथयति, तदनुसारं च परलोकसत्तां स्वीकुर्वाणा आस्तिका अन्ये च नास्तिका इति वक्तुं युज्यते। जैनदर्शनं तद्विषये नास्ति मौनभाक्। अतो नास्ति नास्तिकं जैनदर्शनमित्येव साधीयः।” -डॉ० मंडन मिश्र, कुलपति (श्री महावीर परिनिर्वाण स्मृति ग्रंथ खंड 3, पृ०1, सन् 1975) जैन धर्म जैन धर्म मानव को ईश्वरत्व की ओर ले जाता है और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यग्चारित्र के जरिए पुरुषार्थ से उसे परमात्म पद प्राप्त करा देता है। (वर्धमान महावीर स्मृति ग्रंथ-2002, दिल्ली) -डॉ० मुहम्मद हाफिज जैन धर्म-एक झलक

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