Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 65
________________ जैन धर्म के प्रमुख पर्व-उत्सव प्रत्येक धर्म की तरह जैन धर्म में भी अपने त्योहार एवं पर्व मनाए जाते हैं। इनके आयोजन हेतु जनसामान्य में काफी उत्साह रहता है। प्रत्येक पर्व का संबंध किन्हीं न किन्हीं विशेष धार्मिक क्रियाओं अथवा कथाओं से अवश्य रहता है। जैन धर्म हमेशा अहिंसक जीवन तथा नैतिक आचरण सिखाता है, इसलिए जैन धर्म में कोई भी पर्व मनाया जाए, उसका हिंसा या अनैतिकता से दूर-दूर तक लेना-देना नहीं होता। धर्म के नाम पर बेकसूर प्राणियों की बलि, शराब, मांस-जुआ आदि का सेवन जैन धर्म को कभी स्वीकृत नहीं रहा अपितु उसने हमेशा ऐसे अधर्म का निषेध किया है। जैन धार्मिक पर्व दो प्रकार के होते हैं (1) सामयिक पर्व (2) शाश्वत पर्व (1)सामयिक पर्व इन्हें तात्कालिक पर्व भी कहा जाता है। यह भी दो प्रकार के होते हैं(i) महान् व्यक्तियों से संबंधित (ii) घटना विशेष से संबंधित (i) महान व्यक्तियों से संबंधित पर्व- तीर्थंकरों की जयंतियों तथा उनके निर्वाण दिवस साक्षात् तीर्थंकरों से संबंधित हैं। जैसे महावीर जयंती के दिन भगवान महावीर का जन्म हुआ था और दीपावली के दिन भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। इसी प्रकार ऋषभदेव जयंती, पार्श्वनाथ जयंती एवं अन्य सभी तीर्थंकरों की जयंतियाँ उनकी जन्म-तारीखों पर बहुत हर्षोल्लासपूर्वक मनाई जाती हैं। मंदिर में उनकी विशेष पूजा-अभिषेक, नगर में जुलूस इत्यादि का आयोजन विशेष रूप से होता है। (ii) घटनाओं से संबंधित पर्व- रक्षाबंधन, अक्षय तृतीया आदि वे पर्व हैं जिनका संबंध पौराणिक घटनाओं से है। (2) शाश्वत पर्व-त्रैकालिक तथा शाश्वत पर्व न तो किसी महान व्यक्ति से संबंधित हैं और न ही पौराणिक घटनाओं से। इनका संबंध आध्यात्मिक भावों से होता है। दशलक्षण महापर्व, अष्टाह्निक महापर्व आदि ऐसे ही पर्व हैं जिनका संबंध आत्मा के दशधर्मों से है। चूँकि आत्मा अनादि-अनंत शाश्वत तत्व है, अतः आत्मा से संबंधित होने के कारण ये पर्व भी शाश्वत कहे जाते हैं। सभी जैन पर्यों में विशेष धार्मिक आराधनाएँ होती हैं। ऋषभदेव जयंती जैन धर्म के आदि प्रर्वतक तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म चैत्रवदी नवमी को हुआ जैन धर्म-एक झलक

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