Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 40
________________ करते हैं तो आत्मा में शुभ कर्म आते हैं। यदि अशुभ क्रिया करते हैं तो अशुभ कर्म आते हैं। इन्हें ही शुभ आस्रव तथा अशुभ आस्रव कहते हैं। ( 4 ) बंध- आस्रव के बाद कर्म आत्मा में ही ठहर जाते हैं, उनका यह ठहरना (इकट्ठा होना) बंध है, जैसे नाव में पानी एकत्रित हो जाता है। इसी बंध से दुःख बढ़ता है। अतः यह भी दुःख का कारण है। (5) संवर - आत्मा में कर्मों का आना रुक जाए ऐसा उपाय करना संवर तत्व है; जैसे- नाव में पानी न आए, अतः छेद को बंद कर देना । अतः आस्रव को रोकना ही संवर है। यह दुःख रोकने का पहला उपाय है। ( 6 ) निर्जरा - आत्मा में जो कर्म ठहर (इकट्ठे हो गए थे, तपस्या के द्वारा उनका क्रमशः क्षय करना ही निर्जरा है जैसे छेद बंद करने के बाद नाव में जो पानी ठहरा हुआ है, उसको उलीचकर बाहर फेंकना। यह दुःख दूर करने का उपाय है। (7) मोक्ष - जब सारे ही कर्मों का नाश हो जाए और आत्मा स्वच्छ, शुद्ध व निर्मल हो जाए तब वह संपूर्ण कर्मों से मुक्त हो जाती है, इसे ही मोक्ष कहते हैं। एक बार पूर्ण कर्मों की समाप्ति के बाद जीव मोक्ष प्राप्त कर लेता है तब पुनः कभी संसार में पुनः जन्म नहीं लेता। अवतार भी धारण नहीं करता । जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इसलिए सच्ची मुक्ति (मोक्ष) यही है। इन सात तत्वों में जैन दर्शन का सार निहित है। संपूर्ण शास्त्रों का ज्ञान होने पर भी यदि इन सात तत्वों का श्रद्धान और ज्ञान इनका आचार नहीं है तो मुक्ति असंभव है। - - ये सात तत्व मनुष्य को मुक्त होने के लिए रास्ता दिखलाते हैं। इन सात तत्वों पर सच्चा श्रद्धान करने से ही मोक्षमार्ग की शुरूआत होती है जैन दर्शन में मोक्ष प्राप्ति के लिए यह प्रक्रिया बहुत वैज्ञानिक है। यहाँ आत्म शुद्धि को बल दिया गया है। कोई भी तंत्र-मंत्र, गंडा- ताबीज, निरुद्देश्य कामना सहित कठोर तपस्या तथा और कोई दूसरा व्यक्ति भी हमें सच्चा मोक्ष सुख नहीं दे सकता। जो जीव स्वयं सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान पूर्वक संयम, साधना, तपश्चरणादि करता है, आत्मानुभूति रूप चारित्र को प्राप्त करता है तथा सभी कर्मों को स्वयं ही नष्ट करता है वो ही सच्चा अविनाशी मोक्ष सुख प्राप्त करता है। यह सब जीव के स्वयं के पुरुषार्थ से ही संभव है। ऐसा नहीं होता कि जप-तप आदि कोई और करे तथा यदि वो या मैं चाहूँ तो उसका फल मुझे मिल जाए। किसी चमत्कार से भी व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता। हम जानते हैं कि पूरी दुनिया में वे धर्म ज्यादा लुभावने तथा जनता के प्रिय बन जाते हैं जो चमत्कार तथा सस्ते साधनों से मुक्ति की सिद्धि (मोक्ष प्राप्ति) बतलाते हैं; किंतु जैन धर्म असत्य के आधार पर प्रचार-प्रसार या अपने धर्म के अनुयायियों की जैन धर्म एक झलक 26

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