Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 28
________________ जैन धर्म का प्रमुख मंत्र एवं प्रार्थना यद्यपि जैन धर्म में अनेक उत्कृष्ट मंत्र और प्रार्थनाएँ हैं, किंतु एक मुख्य मंत्र ऐसा है जिसे जैन समाज का बच्चा-बच्चा याद रखता है और जपता है, उसका नाम है- ‘णमोकार महामंत्र'। इसे हिंदी में नमस्कार महामंत्र कहते हैं। यह नमस्कार मंत्र बच्चे के जन्म होने के साथ ही सर्वप्रथम उसके कान में सुनाया जाता है। इस मंत्र से ही हज़ारों मंत्रों की उत्पत्ति हुई। प्राकृत भाषा के आर्या छंद में निबद्ध जैन धर्म का यह नमस्कार महामंत्र पूरे विश्व के इतिहास में एक ऐसा मंत्र; एक ऐसी प्रार्थना, वंदना या स्तुति है जिसका संबंध किसी व्यक्ति की पूजा से नहीं, अपितु गुणों की पूजा से है। व्यक्ति में विद्यमान गुणों की स्तुति के रूप में इस णमोकार मंत्र को दिगंबर, श्वेतांबर यहाँ तक कि जैन धर्म में स्नेह रखने वाले अन्य सभी जैनेतर बंधु भी अत्यंत श्रद्धापूर्वक बोलते हैं। सर्वप्रथम हम यहाँ इस मंत्र का उच्चारण करेंगे, फिर इसके अर्थ को समझेंगे। शुद्ध मंत्र है णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व-साहूणं णमो अरिहंताणं अर्थात् लोक के सभी अरिहंतों को नमस्कार। समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले तथा ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय, अंतराय- इन चार (घातिया) कर्मों का नाश करके संपूर्ण ज्ञान को प्राप्त करने वाले अरिहंत होते हैं। अब जिसने भी इस शुद्धता और परमात्म पद को प्राप्त किया हो, चाहे वे जिस नाम से भी हों उनको मेरा नमस्कार। णमो सिद्धाणं अर्थात् लोक के सभी सिद्धों को नमस्कार। जो समस्त आठों कर्मों का नाश करके, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य और अनंत सुख को प्राप्त, शरीररहित निराकार सिद्धदशा को प्राप्त कर चुके हैं, ऐसे लोक के ऊपर अग्रभाग में स्थित सभी सिद्धों को, चाहे वो जो भी हों उनको मेरा नमस्कार। णमो आइरियाणं अर्थात् लोक के सभी आचार्यों को नमस्कार। सम्यक् दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र रूप रत्नत्रय की प्रकर्षता के कारण जो साधु संघ के नायक हैं तथा समस्त मुनि संघ - जैन धर्म-एक झलक

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