Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 37
________________ रत्नत्रय और मोक्षमार्ग संसार में संसार से मुक्ति के लिए अनेक तरह के उपाय लगभग सभी धर्म बतलाते हैं। सभी आस्तिक दर्शनों की मान्यता है कि यह संसार ही दुःख का कारण है और इस जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त होकर ही परम सुखी हुआ जा सकता है। इसके लिए कोई कहता है श्रद्धा और भक्ति के माध्यम से ही मुक्ति मिलती है। कोई कहता है कि बिना ज्ञान प्राप्त किए मुक्ति नहीं मिल सकती। इससे भिन्न कोई यह मानता है कि कठोर तप-आचरण करने से ही मोक्ष मिलता है। इस तरह मोक्ष-प्राप्ति के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के मत सामने आते हैं। दूसरे पद में जैन धर्म एक नया चिंतन देता है। वह कहता है कि सिर्फ़ श्रद्धा, सिर्फ सम्यक् श्रद्धा, सिर्फ ज्ञान या आचरण से मोक्ष नहीं मिलता। किसी को सिर्फ़ श्रद्धा हो तथा उसका ज्ञान और आचरण सही न हो तो वह मोक्ष का अधिकारी नहीं है। इसी तरह ज्ञान तो हो मगर श्रद्धा और आचरण न हो तो वह मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता। मात्र आचरण हो, श्रद्धा और ज्ञान का अभाव हो तो वो भी सफल नहीं होगा। बल्कि ये तीनों जब सही (सम्यक्) रूप में जीवन में उतरेंगे तभी जीवन की सार्थकता होगी और मोक्ष प्राप्त होगा। सही श्रद्धा, ज्ञान और आचरण इन तीनों के योग से ही मोक्षमार्ग बनता है। एक प्रसिद्ध सूत्र है जिसे आचार्य उमास्वामी ने अपने ग्रंथ तत्वार्थसूत्र में सबसे पहले लिखा है 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' यहाँ सम्यक् सच्चे के अर्थ में है। दर्शन का अर्थ श्रद्धा है। श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र हों तो सच्चे हों, सही हों। गलत श्रद्धा, विपरीत ज्ञान और मिथ्या चारित्र संसार में भटका देते हैं, इसलिए सावधानी भी रखनी आवश्यक है। जिस प्रकार अस्वस्थ होने पर सही वैद्य के प्रति सच्ची श्रद्धा, सही दवा का ज्ञान तथा उस दवा का सही विधि से सेवन करने से ही रोग दूर होता है उसी प्रकार सम्यक दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र इन तीनों को जीवन में उतारने से भव-रोग दूर होता है और मोक्ष सुख मिलता है। सम्यग्दर्शन वीतराग देव, वीतरागता के उपदेशक शास्त्र और वीतरागी साधु इन तीनों पर ही इतनी दृढ़ श्रद्धा रखना व्यवहार से सम्यग्दर्शन कहलाता है। तत्वों के प्रति सच्चा श्रद्धान, आत्मा के प्रति आस्था तथा स्व-पर का श्रद्धान भी सम्यग्दर्शन कहा जाता है। जैन धर्म-एक झलक

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