Book Title: Jain Dharm Ek Zalak
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Shantisagar Smruti Granthmala

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Page 12
________________ पिछले कई वर्षों से दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक ट्रिब्यून, नवभारत टाइम्स आदि अखबारों में लगातार जैन धर्म-दर्शन से संबंधित मेरे कई आलेख छपे। उन आलेखों पर जो सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई, उसने भी मुझे यह पुस्तक लिखने हेतु प्रोत्साहित किया। अखबारों में लेख पढ़कर कई पत्र मेरे पास लगातार आए। उन पत्रों में नब्बे प्रतिशत्र पत्र उनके हैं जो जन्म से जैन नहीं हैं। जैन समुदाय से आने वाले पत्रों की संख्या दस प्रतिशत ही है। मुझे अजैन बंधुओं की जैन धर्म-दर्शन में रुचि देखकर महान आश्चर्य हुआ। उन्होंने अपने पत्रों में जो जिज्ञासाएँ रखीं, उनसे मैं बहुत उत्साहित हुआ। यही कारण है कि मैंने यह पुस्तक जैनेत्तर बंधुओं को दृष्टि में रखकर लिखी है। __ मेरे पूज्य पिता जी प्रो० (डॉ०) फूलचंद जैन 'प्रेमी' (अध्यक्ष-जैनदर्शन विभाग, सं०सं० विश्वविद्यालय, वाराणसी तथा अखिल भारतीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद अध्यक्षचरजी) ने तथा माँ डॉ० मुन्नीपुष्पा जैन ने बाल्य काल से ही जिनवाणी सेवा की लगन लगा दी। मेरी कोई भी रचना, लेख या पुस्तक उनके अमूल्य सुझावों तथा परिष्कार के बिना पूर्ण बन ही नहीं पाती है। माता-पिता का वरदहस्त ही मुझे छोटे से छोटा तथा बड़े से बड़ा कार्य करने की ऊर्जा प्रदान करता है। इस पुस्तक में भी उनका बहुत मार्गदर्शन मिला है। मेरे गुरु प्रो० दयानंद भार्गव जी की प्रेरणा तथा आशीर्वाद मुझे हमेशा प्रोत्साहित करता है। धर्मपत्नी श्रीमती रुचि जैन की सहज जिज्ञासाओं ने भी मुझे कई विषयों को प्रस्तुत करने में मदद की है। सधी पाठकों से मेरा निवेदन है कि इस पुस्तक में परिष्कार, संशोधन मुझे अवश्य बताएँ। मेरा अनुभव ज़्यादा नहीं है; अपने थोड़े बहुत अनुभव और अल्पकालिक शास्त्राभ्यास के आधार पर यह प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है कि आप अपना आशीर्वाद अवश्य देंगे। आप अपनी प्रतिक्रिया पत्र, फ़ोन, SMS द्वारा 09711397716 पर तथा Email द्वारा anekant76@yahoo.co.in पर भी कर सकते हैं। -डॉ० अनेकांत कुमार जैन

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