Book Title: Jain Darshanna Vaigyanik Rahasyo
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Bharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha
________________
समर्पणम्
-
श्री शुभंकरपट्टधारकवरो विद्याकलालङ्कृतः, सौजन्यस्य परावधिः परगुणोत्कर्षं दिक्षुर्मुदा । शिष्याणां कलिकल्पवृक्ष इति यः ख्यातो गणे सर्वथा, श्री सूर्योदयसूरिराट् स सततं स्तान् मे परं मङ्गलम् ॥ १॥ अर्पये त्वदीयं तुभ्यं, सम्यग्ज्ञानप्रदायिने । सम्यक्चारित्रयुक्ताय, श्रीसूर्योदयसूरये ॥२॥
-- मुनि नन्दीघोषविजयः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 368