Book Title: Jain Darshan ke Navtattva Author(s): Dharmashilashreeji Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 8
________________ पूज्य श्री बड़े महाराज (श्री विनयकुंवरजी महाराज) की भी मैं हमेशा ऋणी रहूँगी । बचपन से ज्ञान-वैराग्य की बातें बताकर मेरे जीवन को संन्यास मार्ग की ओर ले जानेवाली, मुझपर मातृसदृश प्रेम की वर्षा करनेवाली, साथ ही मेरी उन्नति के लिए सदैव प्रयत्न करनेवाली महासतीजी श्री बेन महाराज (श्री चंदनबालाजी म0) इनकी तो मैं आजन्म ऋणी रहँगी । परम आदरणीय, परमपूज्य, ज्ञानदात्री, विश्वसंत, गुरुणीमैया, महासतीजी श्री उज्ज्वलकुमारी जी की प्रेरणा भूमि और विद्वत्ता के सूर्यप्रकाश में मेरे इस शोध-प्रबंध का बीज अंकुरित हुआ । उनके ज्ञान का, सहवास का और मार्गदर्शन का मुझे जो अलभ्य लाभ मिला, उसका वर्णन मेरी वाणी या लेखनी से करना सर्वथा असम्भव है इससे अधिक मैं क्या कहं ? इस शोध-प्रबंध के लिए मुझे अहमदनगर के बड़े व्यासंगी, सौजन्यमूर्ति डॉ० डी० जी जोशी, एम0 ए0, पी-एच0 डी0, संस्कृत-प्राकृत विभाग प्रमुख, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर, मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त हुए, यह निसर्ग का एक शुभ संकेत ही समझना पड़ेगा । उनके दिए हुए प्रोत्साहन के कारण, बहुमूल्य मार्गदर्शन के कारण और दिखाई हुई तत्परता के कारण ही मैं यह शोध-प्रबंध ठीक समय पर पूरा कर सकी । इसके लिए मैं उनकी अत्यंत ऋणी हूँ। मेरे प्रेरक गुरुवर्य की तो मैं ऋणी हूँ ही । उनके जितने भी आभार मानूंगी, उतने कम ही हैं । उनसे उऋण होना अत्यंत कठिन है । साथ ही मेरी गुरु-भगिनी चरित्रशीलाजी का सहयोग न होता, तो यह ग्रंथ मैं पूरा नहीं कर सकती थी। पी-एच0 डी0 के लिए ग्रंथ लिखते समय आपने मेरी बड़ी सेवा की और मुझे सब प्रकार से सहयोग दिया, इसलिए इस अवसर पर मैं उन्हें भूल नहीं सकती । पी-एच0 डी0 के लिए ग्रंथ छापने की प्रेरणा घाटकोपर के काठियावाड़ के भूतपूर्व प्रमुख, . कार्यकुशल, व्यवहारदक्ष श्री रमणिकभाई देसाई तथा अहमदनगर के धर्मप्रेमी रोहितभाई संघराजका ने दी । वे निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं । साथ ही थीसिस तैयार करने के लिए अहमदनगर के गुरुभक्त श्री नेमिचन्दजी कटारिया एवं धर्मप्रेमी श्री वसंतलालजी वोरा ने बड़े परिश्रम किए । थीसिस छापने के लिए निधि इकट्ठा करने के लिए बंबई के डॉ० धीरेन्द्र एम0 गोसलिया और उनकी धर्मपत्नी चन्दनबेन गोसलिया ने अथक प्रयत्न किए । उनके प्रयत्नों का मैं शब्दों द्वारा वर्णन कर नहीं सकती । पुणे के आदिनाथ संघ के सेक्रेटरी श्री0 सी0 एल0 बाफनाजी ने भी थीसिस निधि एकत्रित करने के लिए अथक प्रयत्न किए । बंधु समान श्री मेहुलभाई जी ने छपाई को व्यवस्थित और आकर्षक बनाने के लिए अनेक परिश्रम किए, इसलिए वे धन्यवाद के पात्र हैं । साथ ही आवश्यक चित्र निकालने के लिए श्री बलदेवभाई ने अपनी कला का परिचय दिया । इसलिए वे भी धन्यवाद के पात्र हैं । इसके अलावा इस शोधग्रंथ के लिए मुझे प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करने वाले सारे साधु, साध्वियां और बंधु-बहनों का मैं मनःपूर्वक आभार मानती हूँ। -जैन साध्वी धर्मशीला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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